बाहरी लोग भारत आये लेकिन भारतीयों ने कभी स्वीकार नहीं किया कि वो सर्वश्रेष्ठ हैं : RSS

0
226

सत्य की खोज करना भारत की परंपरा है । नैरेटिव हमारी परंपरा नहीं है इसलिए नैरेटिव के समानार्थी कोई शब्द हमारे शब्दकोष में नहीं है। हमने उसको विमर्श का नाम दिया। मजबूरी में कई बार अंग्रेंजी शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है भारत को समझना है तो संस्कृत को समझो अपनी भाषाओं को समझो ।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह माननीय दत्तात्रेय होसबोले जी ने – नैरेटिव का मायाजाल,कौन हैं हम,क्या है हमारी पहचान, पुस्तक के विमोचन समारोह में कहा कि परतंत्रता के काल में भी भारतीय लोगों ने बाहरी लोगों के सामने ये स्वीकार नहीं किया वे हमसे श्रेष्ट हैं और लगातार संघर्ष करते रहे । देश आज़ाद होने के बाद गुलामी दिखाने की होड़ लग गयी । भारत, हिंदु और सनातन के लिए घृणा उत्पन्न करने ,उस पर प्रश्न खड़े करने दकियानूसी और पिछड़े हुए दिखाने का जो नैरेटिव अंग्रेजों ने सैट किया बाद में उनके एजेंटों, बुद्धिजीवियों,मीडिया जगत,शिक्षाविदों ने आगे बढ़ाया । अब बदलते समय में हर देश हर समाज हर सभ्यता को नए संदर्भ में ये देखना चाहिए कि वो कौन है । एक राष्ट्र के रूप में हमारी सभ्यता क्या है दुनिया में हमारी हैसियत क्या है । पूरे विश्व को मानवता का स्थायी विचार देने वाला हमारा देश अपने बारे में न भूले और अपने बारे में नए संदर्भों में नैरेटिव रचे।

नैरेटिव का मायाजाल, हम कौन हैं,क्या है हमारी पहचान , किताब के लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार बलवीर पुंज ने कहा कि भारत की परंपरा में सच या झूठ की बात की जाती है नैरेटिव की नहीं । नैरेटिव वो है जो किसी के भी एजेंडे को सूट करता है। नैरेटिव का तथ्यों से कोई लेना देना नहीं है।भारत की संस्कृति में नैरेटिव है नहीं इसलिए उसके समान कोई शब्द भी नहीं है जैसे योग, निर्वाण ,धर्म के लिए अंग्रेंजी में कोई शब्द नहीं है वैसे ही हमारी भाषा में नैरेटिव के लिए कोई शब्द नहीं है । सुप्रीम कोर्ट के वकील और लेखक जे साई दीपक ने कहा नैरेटिव खड़ा करना अपने अस्तित्व को बचाने की एक्सरसाईज़ है । सनातन परंपरा तथ्यों को यथावत रखने की है लेकिन जब नैरेटिव खड़ा करना हो तो तथ्य अपनी अपनी विचारधारा के अनुसार चुने जाते हैं । अपनी विचारधारा के अनुसार उसका प्रचार किया जाता है जैसे वामपंथियों का प्रोपेगेंडा होता है । सनातन परंपरा में तथ्यों को ज्यों का त्यों रखा जाता है बाकी ग्रहण करने वालों के विवेक पर छोड़ दिया जाता है।

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि सनातन में असत्य कुछ है ही नहीं । सनातन को समझने का जितना प्रयास मैनें किया मेरी समझ उतनी ही बढ़ती चली गयी ।जब तक आप अपनी संस्कृति को नहीं समझते तब तक आपको राजनीति की समझ भी नहीं आएगी । एक बार हम जब चैतन्य हो जाते हैं तो धर्म की ज़रूरत भी नहीं रह जाती है । राज्यपाल ने कहा आदि शंकराचार्य ने भारत की एकता और जागृति के लिए चारों दिशाओं में जो चार मठ बनाए वो प्रतीकात्मक थे परिवर्तन भवनों से नहीं विचारों से आया । विचार शास्वत हैं और भवन भौतिक हैं । विचार कभी खंडहर नहीं बन सकते भवन महल किले खंडहर बन जाते हैं । भारत का संस्कृति में समग्रता है व्यापकता है और ये समावेशी है दुनिया की बाकी संस्कृतियों से अलग है इसकी अपनी विशेषता है ।

RR

LEAVE A REPLY