सबसे पहले तो जान लो कि दोनों की हालत खराब करने का कारण कांग्रेस रही है। प्रफुल पटेल के समय से ये सिलसिला शुरू हुआ। उस समय तक एयर इंडिया एक लाभ देने वाली कंपनी थी। इसको घाटे में भेजने के काम शुरू हुए। भारत में एयर इंडिया के अलावा सिर्फ एक और कम्पनी ऐसी है जो अन्तराष्ट्रीय जाती है। वह है जेट एयरवेज।
घोटाले कैसे होते हैं?
जैसे एयर इंडिया कहती है कि मुझे 20 प्लेन चाहिए। कांग्रेस कहती है कि 20 क्यों हम 60 प्लेन खरीदेंगे। ऊपर से नकद, कोई उधारी नहीं। मंत्रालय पर सीधे फटका। कारण- कमीशन। अब जब जरूरत 20 की थी तो 40 का क्या करें?इसलिए इन्हें निजी क्षेत्र को लीज पर दो, वहां से भी कमीशन। अब दे तो दिए लेकिन सारे यात्रियों से भरे टाइम स्लॉट तो एयर इंडिया के पास हैं देश विदेश में। तो एक काम करो वहां निजी क्षेत्र को टाइम स्लॉट दे दो। एयर इंडिया सरकारी है खाली विमान लेकर आ जाएगा तो भी क्या फर्क पड़ रहा है, बस कमीशन आता रहे। इस तरह अटल सरकार में हजारों करोड़ की कमाई करने वाला एयर इंडिया मनमोहन के जाते जाते हजारों करोड़ के घाटे में पहुंच गया।
अब जब निजी क्षेत्र की इतनी चांदी थी तो हर कोई ऐरा गैरा जिसके लिए एयरवेज़ साइड बिजनेस था वो भी उतर गया। माल्या, सहारा, एयर एशिया, दावूद ने भी जेट एयरवेज को रिलॉन्च करवा दिया इत्यादि। जबकि यह बिजनेस बहुत मार्जनल चलता है। ठीक भारतीय रेलवे की तरह जहां बताते थे कि 100 पैसे कमाने के लिए 96 पैसे खर्च हो जाते हैं। अब कितना कम हुआ वो देखना होगा। ऐसे में इन लोगों ने बेमतलब के खर्चे, लग्ज़री, स्टाफ, उनकी औकात से ज्यादा सैलरी आदि शुरू कर दी। ऐसे में कंपनी जितना कमा नहीं रही, उससे ज्यादा खर्चना पड़ रहा। हो सकता है इन्हें लगा कि जैसे जैसे ग्राहक बढ़ेंगे कवर हो जाएगा लेकिन वैसा हुआ नहीं या फिर कांग्रेस है तो चिंता क्या है? 52 लाख करोड़ बंटा है तो 53 लाख करोड़ भी हो सकता है। ऊपर से इनमें से बहुत से ने अपने प्रतिस्पर्धी डूब रही कम्पनी को भी खरीद लिया, मोनोपोली के चक्कर में। इसी का नतीजा था कि किंगफिशर भी डूबी और जेट एयरवेज भी बर्बाद हो गयी। बाकी बची हुई डोमेस्टिक इसलिए टिक रखी हैं कि उनके मालिकों के वो फुल टाइम बिजनेस है तो वो हर चीज पर निगाह बनाये रखते हैं। ऊपर से मोदी सरकार ने जो ये आसान उड़ान बनाई कि हवाई चप्पल वाला भी यात्रा कर सके इससे भी ग्राहकों की संख्या बढ़ी जिससे डोमेस्टिक एयरलाइंस स्पाइस, इंडिगो आदि चल रही हैं। लेकिन अब इनका भी क्या भविष्य रहेगा पता नहीं क्योंकि ये सरकार अब एयर इंडिया को घाटे से उभारने में लगी है। जाहिर है कि अब एयर इंडिया को ही प्रमुख टाइम स्लॉट भी मिलेगा। उसका मंत्रालय भी विमान क्षेत्र के लिए एक्सपर्ट है तो भृष्टाचारी सरकार नही होगी तो आने वाले समय में वो प्रोफिट में भी पहुंचेगा और फिर असली प्रतिस्पर्धा शुरू होगी तो एयर इंडिया इन्हें आसानी से लपेट देगा। लेकिन शायद ऐसा ना भी हो क्योंकि अब सरकार ने प्लेन से यात्रा को भी एक खास से आम यात्रा की तरफ मोड़ने का काम किया है। इससे जब लोगों की संख्या बढ़ेगी तो प्लेन्स की कमी ही होगी और ऐसे में मौजूदा क्या अन्य नए खिलाड़ी भी मैदान में होंगे।
क्या है उपाय
जेट भी अभी उभर सकता है यदि उसका मैनेजमेंट दूसरे को दिया जाय और उससे पहले उसे कोई दूसरी कम्पनी टेकओवर करे क्योंकि जो उसका मुखौटा मालिक नरेश गोयल है, वो NRI है। उसका तो कुछ नहीं जाता लेकिन फिर यहां स्टाफ सड़क पर आता है जैसे किंगफिशर के समय हुआ। बल्कि जेट को उसी के स्टाफ को कॉपरेटिव फर्म बनाकर चलाना चाहिए। शुरू में अपनी सेलरी को कम करें, विलासिता बाहर फेंके और मार्जनल प्रोफिट की ओर धीरे धीरे बढ़ें। अगर 1 से 2 रुपये पर किलोमीटर भी बचा पाए तो कुछ साल में ही वापसी कर लेंगे। सरकार भी सिर्फ अपने नागरिकों के सड़क पर आ जाने की वजह से थोड़ी बहुत आर्थिक सहायता दे सकती है लेकिन उससे कम्पनी उभरेगी नहीं, बल्कि उसका जितना कर्जा फंसा है फिर वो भी डूबेगा और भौंकने वाले फिर कहेंगे कि सरकार ने उद्योगपति की मदद करी।