लखनऊ । पृथ्वी दिवस के अवसर पर एच जी फाउंडेशन के तत्वावधान में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक जागरूकता सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें बोलते हैं शिक्षाविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित त्रिपाठी ने कहा कि 22 अप्रैल 1970 को प्रथम बार इस उद्देश्य से पृथ्वी दिवस मनाया गया था की लोगो को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके. पृथ्वी दिवस की स्थापना अमेरिकी सीनेटर गिलोर्ट नाल्सों के दुवारा 1970 में एक पर्यावरण की शिक्षा के रूप में की गयी थी. 1970 से 1990 तक यह अभियान पूरे विश्व में फ़ैल गया. 1990 से इससे अंतराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा और 2009 में संयुक्त राष्ट्र ने भी 22 अप्रैल को विश्व भर मे विश्व पृथ्वी दिवस मनाने की घोषणा कर दी लेकिन मात्र 1 दिन पृथ्वी दिवस के रूप में मना कर हम पृथ्वी को बर्बाद होने से नहीं रोक सकते हैं इसके लिए व्यापक बदलाव की जरुरत हैं हवा में बाते तो हम सभी करते हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत से जुड़कर भी कुछ करना होगा तभी हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे पृथ्वी माँ को नुक्सान पहुंचे और अगर ऐसा कोई काम करना भी पड़े तो उसके नुक्सान को पूरा करने के लिए जरुर उचित कदम उठाएंगे।
पृथ्वी दिवस पर इस बार का विषय एवं उद्देश्य जल जो प्रकृति की सबसे अनमोल चीज़ हैं उसको कैसे स्वस्थ एवं सुरक्षित रखा जाए क्यूंकि विश्व प्रकृति अपनी दयनीय व्यथा कह रही हैं. क्यूंकि जल का सबसे ज्यादा दोहन एवं प्रदूषण किया जा रहा हैं, नदियों, तालाबो एवं झीलों में अब जल नहीं मल-मूत्र बह रहा हैं, कही सूखा तो कही बाढ़. प्रकृति अपने बचाव के लिए दस्तक दे रही हैं। पृथ्वी पर सबसे चतुर प्राणी मनुष्य अपनी संख्या बढाते हुवे इस लगभग समय सवा सौ करोड़ तक पहुँच गया हैं और अपनी आवश्यकताओ पर केन्द्रित हो कर इस पृथ्वी पर संसाधनों का दोहन एवं वातावरण को प्रदूषित कर रहा हैं जिससे पृथ्वी के नीचे का जल स्तर कम होता जा रहा हैं, कम होता जंगल क्षेत्र वातावरण में जहरीली गैसों से बढ़ता तापमान तथा जिसके कारण पृथ्वी प्रलयकारी सुनामी, भूकंप जैसी विनाशलीला पृथ्वी दिखा रही हैं इसके बावजूद भी आज हम सावधान नहीं हुवे तो वो दिन दूर नहीं जब आपके संपत्तियों को पीने हेतु पानी तथा खाने के लिए भोजन तथा जीने हेतु उचित वातावरण नहीं मिलेगा।

आज के दिन ये संकल्प लेना होगा की हम सभी को जल संरक्षण की दिशा में प्रयास करना चाहिये जैसे वर्षा जल को रोकने के लिए चेक डेम का निर्माण करना चाहिए. रासायनिक उर्वरको के स्थान पर जैव उर्वरक जैसे अजोला, हरी खाद, अजेटो बेक्टर इत्यादि को बढ़ावा देना चाहिए. जैव कीटनाशी जैसे नीम और करंट युक्त दवाओ का प्रयोग करना चाहिए. जाह्न तक संभव हो सके जीवाश्म इधनो पर आश्रित ना हो कार सौर उर्जा को अपनाना होगा. सबसे ख़ास बात तो ये हैं की कृषि के बढ़ते अवशेष पदार्थो को यूँ ही बेकार समझ कर फेकना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें पुन: कंपोज्ड वर्मी कंपोज्ड इत्यादि के रूप में प्रयोग कर प्रदूषण को काफी हद तक टाला जा सकता हाँ और अंत में आइये हम सब मिल कर ये वादा करे की प्रति व्यक्ति कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाएं. रसायनों पर आश्रित ना हो और प्रकृति पर भरोसा करे और तभी हम ये मान सकते हैं शुद्ध, निर्मल, स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त हमारी धरा होगी |

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