माले मुफ्त मौलवी बेरहम
बड़ा अफ़्सोस होता है और गुस्सा आता है जब कोई मोली साहब मस्जिद के मिम्बर से यह बयान करता है कि इंसान और इंसानियत पर होने वाले ज़ुल्मों के खिलाफ ज्ञापन देने की और विरोध प्रदर्शन करने की कोई जरूरत नहीं है, ज्ञापन देने, विरोध प्रदर्शन करने से कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि ज़ालिम और हुक्मरां मिले हुए हैं इसलिए सब्र करो नमाज़ पढो और अल्लाह से मदद मांगो उससे दुआ करो।
तो ऐ मोली साहब अपने आपको अम्बिया का वारिस बताने से पहले कम से कम अपने मज़हब की हिस्ट्री तो जान लेते अगर सिर्फ सब्र नमाज़ और दुआ से सब काम हो जाता तो भला पैग़म्बर मुहम्मद से बेहतर सब्र नमाज़ और दुआ किसकी हो सकती है जिनकी दुआओं पर अल्लाह फ़रिश्ते को ज़मीन पर उतार देता हो, वो भी तुम्हारी तरह सिर्फ नमाज़ और दुआओं से ही मदद ले सकते थे और वो ले भी सकते थे मगर नहीं उन्होंने ऐसा नहीं किया, उन्होंने अल्लाह के निज़ाम को पसंद फ़रमाया अल्लाह के निज़ाम के मुताबिक काम करना पसंद फ़रमाया।
मोली साहब याद करो इस्लाम की पहली जंग को, जंग ए बद्र को,जब पैग़म्बर मुहम्मद मैदाने बदर में अपने तीन सौ तेरह जानिसार सहाबियों के साथ हजारों दुश्मनों के मुकाबिल थे वो ज़ालिम दुश्मन जो अपनी बेटियों को ज़िंदा दफन कर देते थे और ग़ुलामों पर जुल्म की इंतहा तक ज़ुल्म करते थे,… उन ज़ालिमों के मुकाबिल आप स,अ, व,स, और उनके साथियों के पास तैयारी के नाम पर था कुछ टूटी फूटी शमशीरें, कुछ कमज़ोर सी ढालें, महज कुछ ऊँठ तो कुछ घोड़े, ऊपर से तपता रेगिस्तान और मुकाबिल में हजारों दुश्मन जो हर तरह के उम्दा हथियारों से लबरेज़ थे,अब आप स,अ, व,स, का काम था इंसानियत को बचाना और ज़ालिम को हराना,… फिर उस तपते हुए सेहरा में आप स,अ, व,स, ने नमाज़ अदा की और अल्लाह से दुआ की ओर फिर दुआ सुनी भी गई और बद्र नाम की पहली अज़ीमुश्शान फतेह मिली,
तो मोली साहब अब न तो आपकी दुआ आप स,अ, व,स, जैसी है और न ही आपके साथी उन साथी जैसे हैं, तो मोली साहब बताओ इस्लाम की पहली जंग से तुम्हें क्या इबरत मिली यही न कि पहले आप स,अ, व,स, और उनके साथियों ने ज़ुल्म के मुकाबिल तैयारी की और फिर दुआ की,।
और तुम AC वाली मस्जिद में पंखे के नीचे खड़े होकर कहते हो कि ज़ुल्मों के खिलाफ ज्ञापन और विरोध प्रदर्शन करने से कोई फायदा नहीं.. ,अरे मोली साहब यह ज्ञापन और विरोध प्रदर्शन ही हैं जो आज हमारी आवाज़ भारतीय संसद से लेकर अमेरिका तक जा पहुँची है,.. अरे मोली साहब तुम्हें तो कहना था कि भारतीय कानून का पालन करते हुए हर मज़लूम पर हुए ज़ुल्म का विरोध करो चाहे वो ज़ुल्म हिन्दू पर हो या मुसलमान पर, सिख पर हो या ईसाई पर.. ,भारतीय कानून से मांग करो कि ज़ालिम को सख्त सज़ा मिले, ज़ालिम चाहे किसी भी मज़हब का हो, मगर मोली साहब तुम कहते हो नमाज़ और दुआ से मदद लो, अरे ओ पगले बिना जद्दोजहद के लोगों को सब्र सिखा रहे हो… ,मोली साहब अब अगली बार बयान करो तो मिम्बर की इज़्ज़त रखना और लोगों से कहना कि ऐ लोगों, मरते बच्चे, लुटती इज़्ज़तें और मासूम ओ मज़लूमों बेकसूरों पर बढ़ते ज़ुल्मों के खिलाफ कानून के दायरे में अमन ओ शांति के साथ विरोध करो, ताकि हुकूमत को पता चले कि अवाम अब जाग चुकी है और हो सके तो रहनुमाई भी करना।
