क्या वाकई कांग्रेस को मर जाना चाहिए?

    डॉ योगेन्द्र यादव ने हाल ही में अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है कि अगर कांग्रेस भारत के स्वधर्म को बचाने में असफल रहती है तो उसे मर जाना चाहिए। उनके इस बयान का विश्लेषण कर रहे हैं चर्चित किताब कश्मीरनामा के लेखक अशोक कुमार पाण्डेय

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    सामाजिक विचारक राजनैतिक विश्लेषक और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष डॉ योगेन्द्र यादव ने कहा है कांग्रेस को मर जाना चाहिए आखिर इसके पीछे की सोच और रणनीति क्या है? ये सोच कोई आज ही की नहीं है दरअसल आज जो समाजवादी, वामपंथी, अम्बेडकरवादी लोग हैं उनमें से अधिकांश की पोलीटिकल ट्रेनिंग एंटी कांग्रेसवाद से ही हुई है। सहज भी है। नब्बे के दशक पहले और एक हद तक बाद भी कांग्रेस पूँजीवाद और ब्राह्मणवाद की प्रतिनिधि पार्टी थी। आरएसएस अपने सामाजिक प्रसार के बावजूद केंद्रीय सत्ता से बहुत दूर लगता था और इसीलिए जन्म के कांग्रेसी वीपी सिंह भी जब बोफर्स के मामले पर आरोप लगाते कांग्रेस से अलग हो मोर्चा बनाते हैं तो नाम देते हैं “जनमोर्चा.” जन बनाम अभिजन का यह द्वैत स्वाभाविक था। कांग्रेस सत्ता का प्रतीक थी और बाक़ी सब इसके ख़िलाफ़ जनता की पार्टी, मोर्चे, दल वग़ैरह।

    लेकिन विचारण प्रश्न ये है

    कि क्या अब भी हालात वही हैं? क्या अब भी पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद की प्रतिनिधि पार्टी कांग्रेस ही है? क्या जो नई प्रतिनिधि है वह कांग्रेस से बेहतर है जनता के लिए? क्या आज बाक़ी पार्टियाँ जनता की प्रतिनिधि हैं (सवाल तो यह भी कि क्या थीं वे कभी?)

    लोकतंत्र में लेसर एविल 

    अभी तो एक्जिट पोल के रिजल्ट आये हैं 23 मई को वास्तविक चुनाव के रिजल्ट आने वाले है मान लीजिए कि रिजल्ट वही हो जो एक्जिट पोल बता रहे हैं तो क्या कुछ सवालों को नेपथ्य में धकेल दिया जायेगा? जनता के मूलभूत मुद्दों पर विपक्ष के किस पार्टी ने बात की? विपक्ष के किस पार्टी के मेनिफेस्टो में विजन दिखा? औ हॉ ये भी याद रखना चाहिए कि कोई एक पार्टी बाक़ी विपक्ष के प्रति सहिष्णु और शांत रही तो वह कांग्रेस थी। अगर एक लाइन में कहूँ तो सबसे “लेसर एविल” और लोकतंत्र “लेसर एविल” चुनने का ही खेल है।

    तो योगेंद्र जी जैसे लोग असल मे समझ नहीं पा रहे कि अप्रासंगिक तो वह हुए हैं। बड़ी बड़ी बातों के बीच न वह आज की सामाजिक राजनीतिक हक़ीक़त समझ पा रहे न ही उसमें हस्तक्षेप की कोई स्थिति है। दुर्भाग्य यह कि अहंकार ने पुनरचिन्तन का कोई विकल्प भी नहीं छोड़ा।

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