प्रभा वाजपेई
उन्नाव – जब हम बच्चे थे तो दादा -दादी ,नाना -नानी हमें बताते थे कि उनलोगों के समय में कौड़िया चला करती थी सुनकर बहुत अजीब सा लगता था कि नदियों से निकला यह शीप धन के रूप में कैसे समझा जाता होगा | फिर एक आना दो आना कि बात बताते बड़ा अजीब महसूस होता था | हलाकि आज के 10 -15 वर्ष पहले तक चार आना , आठ आना , बारह आना , सोलह आना जैसी करेंसी चलन में थी | सोलह आना का मतलब एक रुपया था जो अभी चलन में है लेकिन आज के बच्चे उसे एक रुपया ही जानते मानते हैं |आज भी हमारे घरों में या आस-पास समाज में पुरानी करेंसी केवल कहावतों में सुनी जाती है | मुद्रा की तमाम इकाइयों ने हमारी बोल-चाल की भाषा को कई कहावतें दी हैं, जो पहले की तरह आज भी खूब प्रचलित हैं। जैसे – मर जाऊँगा लेकिन तुम्हे एक ‘फूटी कौड़ी’ भी नहीं दूंगा। एक ‘धेले’ का काम नहीं करती केवल फैशन बघारती है हमारी बहू !| वह इतना कंजूस है कि उसकी चमड़ी जाये पर ‘दमड़ी’ न जाये। मेरा मालिक ‘पाई-पाई’ का हिसाब रखता है। आपकी बात सोलह ‘आने’ सच निकली भाई सब |इस तरह और भी कहावतें बनी हैं |अब कहावतों में पायी जाने वाली इन मुद्राओं का क्रमशः कैसे – कैसे विकास हुआ यह समझिए |जैसे –
फूटी कौड़ी (Phootie Cowrie) से कौड़ी, कौड़ी से दमड़ी (Damri), दमड़ी से धेला (Dhela), धेला से पाई (Pie), पाई से पैसा (Paisa), पैसा से आना (Aana), आना से रुपया (Rupya) बना।
256 दमड़ी = 192 पाई = 128 धेला = 64 पैसा (old) = 16 आना = 1 रुपया
1) 3 फूटी कौड़ी – 1 कौड़ी
2) 10 कौड़ी – 1 दमड़ी
3) 2 दमड़ी – 1 धेला
4) 1.5 पाई – 1 धेला
5) 3 पाई – 1 पैसा ( पुराना)
6) 4 पैसा – 1 आना
7) 16 आना – 1 रुपया