आप ने ही तो नशेमन पे गिराई है बिजलियां अखिलेश जी

समाजवादी पार्टी की चुनावी हार के पीछे के कारणों को तलाश करता लेख

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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव

अखिलेश यादव ने अपने सभी प्रवक्ताओं को हटा दिया है और सभी मीडिया चैनलों को निर्देश दिया है कि समाजवादी पार्टी के किसी नेता को अपनी डिबेट में आमंत्रित ना करें।भले इस समय अखिलेश यादव ने हताशा में यह कदम उठा लिया है परंतु वास्तविकता यह है कि उनकी पार्टी की दुर्दशा और अपने परिवार की पारंपरिक सीटें गंवाने के जिम्मेदार अखिलेश यादव स्वयं है,और इसकी जड़ में है मायावती संग उनकी शर्तों पर किया गया गठबंधन, जब अखिलेश यादव मायावती के पास गठबंधन का प्रस्ताव लेकर गए तो मायावती ने बड़ी ही चतुराई से अखिलेश यादव से समाजवादी पार्टी की हर वह सीट मांग ली थी जिसपर समाजवादी पार्टी पिछले लोकसभा चुनावों में दूसरे स्थान पर रही थी, मायावती के पास तब एक सांसद तक नही था और उनके राज्यसभा पहुंचने तक के लाले थे, जबकि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी तब लोकसभा व् राज्यसभा दोनो स्थानों पर अपने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती थी, परन्तु फिर भी अखिलेश ने मायावती की शर्तों के आगे झुककर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।

गेस्टहाउस कांड के बाद मायावती मुलायम पहली बार एक साथ

मायावती ने यह पूरा गठबंधन अपनी शर्तों पर किया था मायावती एक बार भी अखिलेश यादव के आवास पर नहीं गई केवल अखिलेश यादव ही मायावती के आवास के चक्कर काटते रहे,

राष्ट्रीय लोकदल के अजीत सिंह और जयंत चौधरी को गठबंधन में सम्मिलित करने के लिए मायावती अपने कोटे से एक भी सीट छोड़ने को तैय्यार नहीं थी, उन्होंने अखिलेश को बता दिया था कि पिता-पुत्र अजित सिंह और जयंत चौधरी को यदि गठबंधन में रखना है तो सीटें अखिलेश अपने हिस्से से दें, वह तो बाद में जाकर बड़ी मुश्किल से मायावती एक सीट छोड़ने को राजी हुईं थी।

माया मुलायम एक मंच पर

अखिलेश यादव ने यह सारी बातें मानकर स्वयं ही समाजवादी पार्टी द्वारा अधिक जीत जीतने की संभावना कम कर दी थी,जबकि उस समय मुलायम सिंह ने अखिलेश द्वारा आधी सीटें मायावती को देने को घातक कहा था और स्पष्ट कहा था कि राज्य की मात्र आधी सीटों पर लड़ने के इस निर्णय से समाजवादी पार्टी की अधिक सीटें जीतने की संभावनाएं क्षीण हो जाती हैं

इस चुनाव में मायावती के पास हारने को कुछ भी नहीं था क्योंकि 2014 में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली थी, परन्तु राजनीतिक पैंतरों को समझने वाली मायावती ने बड़ी ही चतुराई से समाजवादियों का वोट बैंक इस्तेमाल किया और अपना टैक्टिकल वोट समाजवादी पार्टी को शिफ्ट नहीं होने दिया, इससे उन्होंने एक तीर से दो शिकार किए मायावती ने गेस्ट हाउस कांड का बदला लिया और भरे मंच पर पूरे यादव कुनबे ने मायावती के आगे हाथ जोड़े जिसमें मुलायम सिंह यादव भी सम्मिलित थे, और दूसरी ओर मायावती ने यादव कुनबे की राजनीतिक शक्ति भी इस स्तर तक कम कर दी कि वे अपने परिवार के सीटें तक गंवा बैठे।

एक और चाल जो मायावती की सही बैठी वह थी अफ़ज़ाल अंसारी को टिकट देना, मायावती भली प्रकार जानती थी की गैंगस्टर मुख्तार अंसारी व् अफजाल अंसारी वाले कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय का प्रस्ताव अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव पूर्व में लेकर आए थे, और उसे अखिलेश ने तब नकार दिया था और शिवपाल को बड़ी ही लज्जा का सामना करना पड़ा था,यादव कुनबे में आग भड़काने व् चचा-भतीजे में दूरियां बढ़वाने हेतु जानबूझकर मायावती ने उसी अफजाल अंसारी को अपनी पार्टी का टिकट दिया और गाजीपुर से लड़ाया, यानी महागठबंधन का प्रत्याशी वही अफजाल अंसारी था जिसके नाम पर एक जमाने में अखिलेश यादव नाक भौं सिकोड़ते थे और उस अफ़ज़ाल के विरुद्ध अपने चाचा से भी जा लड़े थे,अब उसी अफ़ज़ाल को भतीजे अखिलेश के महागठंबधन का प्रत्याशी बनता देखकर शिवपाल यादव को बुरा लगना स्वाभाविक था की उनके अपने भतीजे ने तब उनकी बात न मानी परन्तु आज एक बाहरी महिला के संग हाथ मिलाकर उसी अफ़ज़ाल को प्रत्याशी बनवा दिया, इसी कारण शिवपाल यादव अपने विश्वासपात्र लोगों को लेकर समाजवादी पार्टी से अलग हुए और स्वयं अपने भतीजे के विरुद्ध चुनाव लड़े इसका खामियाजा भी समाजवादी पार्टी को भुगतना पड़ा।

2014 के लोकसभा चुनावों में जब भाजपा उत्तर प्रदेश में 73 सीटें जीत कर आई थी तब भी समाजवादी पार्टी अपने परिवार की सीटें बचाने में सफल रही थी, परंतु 2014 में धरातल पर बैठी हुई मायावती जिसके पास एक भी सीट नहीं थी वह अब 2019 में अखिलेश के वोट बैंक की सहायता से 10 सांसद लेकर यूपी में भाजपा के बाद अब दूसरी सबसे सशक्त राजनीतिक शक्ति बनकर बैठी है, और दूसरी सबसे सशक्त शक्ति रही समाजवादी पार्टी अब तीसरे नंबर पर आ चुकी है।मायावती ने बड़ी ही चतुराई से अपनी पार्टी को ना केवल पुनर्जीवित कर लिया है अपितु उन्होंने समाजवादी पार्टी और यादव कुनबे के पर भी कतर दिए हैं,

यह सब अखिलेश यादव की अपरिपक्व राजनीतिक समझ का ही दुष्परिणाम है जिसके प्रति मुलायम सिंह यादव ने उन्हें आगाह किया था, किंतु चाटुकारों व् नई नई प्राप्त हुई शक्ति के नशे में चूर अखिलेश यादव ने तब मध्यरात्रि में अपने पिता के सिंहासन पर ही जबरी कब्जा कर उन्हें समाजवादी पार्टी प्रमुख के पद से बेदखल कर दिया था, मुलायम की पत्नी साधना गुप्ता ने भी तब मीडिया में आकर अखिलेश की तुलना औरंगजेब से की थी, और आज मुलायम सिंह की आशंका सही साबित हुई,वैसे सम्भवतः अभी भी अखिलेश यादव को अपनी गलती का एहसास नहीं हुआ है और अपनी भूल स्वीकारने के बदले वह अपने प्रवक्ताओं और पार्टी के नेताओं पर मीडिया में बोलने की पाबंदी लगाकर बस अपनी हार की खीज उतार रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम से एक बात प्रमाणित होती है की राजनीति में अनुभव, दूरदृष्टि व् सही निर्णय क्षमता जैसी कलाएं बहुत महत्वपूर्ण होती है, जिसकी मायावती व् मुलायम के पास तो कमी नही है, किंतु समाजवादी पार्टी की लगाम अपने पिता के हाथ से छीनकर बैठे अखिलेश यादव में इसका अभाव स्प्ष्ट दृष्टिगत होता है, और जिस प्रकार अखिलेश यादव राजनीति करते व् पार्टी का नेतृत्व करते दिख रहे हैं वो भविष्य के अजित सिंह बनने की ओर अग्रसर हैं।

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