लखनऊ । हर परंपरा को पाखंड बोलने की हमारी आदत हो गई है पेड़ की पूजा को हम पाखंड बोल देते हैं जबकि ये पाखंड नहीं बल्कि मानव जाति से प्रेम की पहचान है ताकि पेड़ संरक्षित रहें उन पर कुल्हाड़ी ना चले इसलिए उसे धार्मिक कर्म कांड से जोड़ दिया गया है। क्या ये जरूरी नहीं कि भय-भूख, बेकरारी-बीमारी, शुगर-ब्लड प्रेशर, लंग्स-लीवर और किडनी एवं कोरोना की समस्या से जूझ रही दुनिया के लिए अपनी परंपराओं का निर्वहन करते हुए पेड़ प्रकृति और पर्यावरण से प्रेम किया जाये ।
हमारी संस्कृति में प्रकृति एवं पर्यावरण को पूजने की परंपरा रही है लेकिन प्रदूषण का बढ़ता स्तर महामारी का खतरा खान पान में मिलावट बाढ़ सूखा और लोगों की घटती प्रतिरोधक क्षमता ने हमें पर्यावरण के प्रति सजग रहने और पेड़ पौधों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए सीख दी है। ऐसे में तीज त्योहारों पर पेड़ पौधों की पूजा का खास महत्व स्वाभाविक ही है। पूजा के रूप में ही सही लेकिन पेड़ों को सफेद या लाल धागे से घेर कर बांधने की प्रक्रिया पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करने का संदेश देता है।
मानव के प्रकृति को बचाये रखने के लिए प्रकृति का संरक्षण जरूरी हो गया है क्योंकि मानव के सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण का सुरक्षित रहना जरूरी है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही धर्म और प्रकृत्ति का अंतर्संबंधों देखा गया है। भारतीय संस्कृति में वट वृक्ष, पीपल, आंवला, बेल, कदम, पलाश, नीम और तुलसी को पवित्र मान कर इनकी पूजा की परंपरा रही है यही नहीं हर घर के आंगन में तुलसी का होना स्त्री सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है इस दिन विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में या बौद्धिक सेमिनारों में पर्यावरण संरक्षण पर कुछ विचार विमर्श एवं सलाह सुझाव दे कर अपने उत्तरदायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है लेकिन पिछले दो सालों से कोविड प्रोटोकोल की वजह से सेमिनारों की जगह वेबीनारों ने ले ली है। क्योंकि दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी, वाला नियम भी तो मानना है लेकिन इन विषम परिस्थितियों में भी न्यूज डॉन की रिपोर्टर मुस्कान ने हार नहीं मानी और निकल पड़ीं पर्यावरण को बेहतर बनाने मे देश के राष्ट्रीय पेड़ बरगद की पड़ताल करने।
बरगद के पेड़ के बारे में तो आप जानते ही होंगे इसका वैज्ञानिक नाम फाइकस बेंगालेंसिस Ficus Benghalensis है ये पेड़ हिन्दू धर्म में हमेशा से पूजनीय रहा है तो दूसरी ओर इसको हमारे राष्ट्रीय वृक्ष के रूप में भी मान्यता मिली हुई है इसके साथ ही ये भारत के इतिहास और लोक कथाओं का हिस्सा भी रहा है।
लेकिन इसकी ख़ास बात ये भी है कि ये पेड़ कई सारे औषधीय गुणों से भरपूर है इसमें मौजूद तत्वों की बात करें तो इसमें एंथोसाइनिडिन, कीटोंस, फिनोल, टैनिन्स, सैपोनिंस, स्टेरोल्स और फ्लेवोनॉयड जैसे तत्व पाए जाते हैं. विशेषकर बरगद की पत्तियों में जो पोषक तत्व मौजूद रहते हैं उनमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम और फास्फोरस जैसे तत्व शामिल हैं. आइए जानते हैं ये पेड़ किस तरह से सेहत को फायदे पहुंचाता है।
आयुर्वेद में बरगद को अत्यंत लाभकारी माना गया है। इसके पंचांग (जड़, तना, पत्ते, फूल एवं फल) चिकित्सकीय उपचार में काम आते हैं। ये फोड़े-फुंसी, दर्द-निवारण, मधुमेह, डायरिया, यौन एवं चर्म रोगों में विशेष लाभदायक बताए गए हैं। वटवृक्ष वातावरण को शीतलता एवं शुद्धता प्रदान करता है।
बरगद का पेड़ दांतों में सड़न और मसूड़ों में सूजन की समस्या को कम करने में मदद करता है. पेड़ की जड़ को चबाकर मुलायम करने के बाद इसको मंजन या दातून की तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है. पेड़ में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं जो दांतों और मसूड़ों की दिक्कत को कम करने में सहायता करते हैं।
कई बार स्किन पर फोड़े-फुंसी और दाने निकलने लगते हैं. इसको दूर करने के लिए बरगद की जड़ को इस्तेमाल में लाया जा सकता है।इसके लिए आप इसकी जड़ को पीसकर इसका लेप बनाकर त्वचा पर लगा सकते हैं. पेड़ में मौजूद एंटी-माइक्रोबियल तत्व बैक्टीरिया को नष्ट करने में मदद करते हैं और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन को रोकने में सहायता करते हैं।
जोड़ों का दर्द दूर करने में सहायक बरगद का पेड़ जोड़ों के दर्द की समस्या को दूर करने में भी सहायता करता है. इस तकलीफ से राहत पाने के लिए बरगद के पेड़ की पत्तियों का अर्क निकाल कर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. इस अर्क को दर्द वाली जगह पर लगाकर कुछ देर हल्के हाथों से मालिश करने से राहत मिलती है इसमें मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करते हैं और दर्द से राहत देते हैं।
बरगद को भारत का राष्ट्रीय पेड़ माना जाता है. इसका निरंतर विस्तार को शाश्वत जीवन का प्रतीक माना जाता है, ख़ास तौर पर हिंदू धर्म में.समय के साथ यह पेड़ उर्वरता, जीवन, और पुनरुत्थान का विश्व-प्रसिद्ध प्रतीक बन गया है पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में उगने वाले बरगद की शाखाओं पर हिंदू, बौद्ध और अन्य धर्मों के लोग अक्सर रिबन बांधते हैं.इसकी जड़ों के पास देवी-देवताओं की मूर्तियां रखकर छोटा मंदिर बना दिया जाता है.भागवद्गीता में बरगद की जड़ों के ऊपर की ओर और शाखाओं के नीचे बढ़ने का जिक्र है।
पर्यावरण दिवस पर विशेष प्रस्तुति के लिए रिपोर्टर को बधाई
Thanks
Nice story