उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को काफी उम्मीदें थीं कि वो इस बार भी अच्छा प्रदर्शन करेंगे। मगर चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को काफी निराश किया है। जिन क्षेत्रों को बीजेपी का गढ़ कहा जाता था वहां भी बीजेपी को निराशा ही हाथ लगी। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का दावा है कि उनकी पार्टी ने इन क्षेत्रों में बी बीजेपी से अधिक सीटों को अपने नाम किया है।
मोदी के गढ़ में भी बीजेपी को नहीं मिली आशापूर्ण सफलता
प्रधानमंत्री मोदी का क्षेत्र जहां पर उन्हें टक्कर देने की छमता किसी भी पार्टी के नेता में नहीं थी, वहां पर भी बीजेपी अपने खाते में केवल 8 सीटें ही कर पाई। विपक्षी पार्टियों में समाजवादी पार्टी ने 14 और बहुजन पार्टी ने कुल 5 सीटों पर जीत दर्ज की। बता दें कि वाराणसी में पंचायत क्षेत्र में कुल 40 सीटें आती हैं। वाराणसी क्षेत्र में बीजेपी को इतनी कम सीटों का मिलना यह बताता है कि वहां कि जनता भी केंद्रीय पार्टी से ज्यादा खुश नहीं है।
राम की नगरी अयोध्या में बीजेपी नहीं कर पाई कमाल
अयोध्या जिसे हम राम की नगरी कहते हैं, में बीजेपी का अच्छा प्रभाव माना जाता है, मगर इस बार पंचायत चुनाव के नतीजे से ऐसा लग रहा है कि वहां कि जनता इस पार्टी से ज्यादा खुश नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार अयोध्या में आये नतीजों में बीजेपी को केवल आठ सीटें ही मिली हैं जबकि वहां पर कुल 40 सीटें हैं। जबकि समाजवादी पार्टी ने 22 सीटों पर अपना मुहर लगाया है और बहुजन पार्टी ने जिला पंचायत चुनाव में कुल चार सीटें जीती हैं।
यही हाल हमें मथुरा में भी देखने को मिला, वहां पर भी बीजेपी के खाते में केवल 8 सीटें ही आईं। जबकि बहुजन पार्टी ने यहां पर पांच सीटों पर जीत हांसिल की और समाजवादी पार्टी ने 14 सीटों को अपने नाम किया।
पशुओं का फसल को नष्ट करना बीजेपी के हार की बड़ी वजह
बीजेपी के अयोध्या जिला अध्यक्ष दिवाकर सिंह ने यह खुद स्वीकार किया कि उन्हें जितनी उम्मीद थी पार्टी को उतनी सफलती नहीं मिली है। बीजेपी को मिली हार के बाद विपक्षी पार्टी के नेता ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग इस सरकार से तंग आ गए हैं। योगी सरकार के पशु पॉलिसी की वजह से किसानों की फसल को काफी नुकसान हुआ है जिससे कई किसानों को आत्महत्या करने की नौबत आ गई। सरकार की कई और पॉलिसी से भी ग्रामीणों को कुछ खास फायदा नहीं हुआ जिसका नतीजा पंचायत चुनाव में सबको देखने को मिला।
पंचायत चुनाव के नतीजों से यह समझ आता है कि बीजेपी कहीं न कहीं ग्रामीणों तक पहुंचनें में असफल रही है।