राखी : भाई बहन के त्याग-तकरार, प्यार-मनुहार, इंकार-इकरार का है ये त्योहार

महारानी कर्णावती और हुमायूं राजा लगभग बराबर की या आस पास की उम्र के होंगे। इस कारण महारानी कर्णावती ने राजा हुमायूं को राखी बांध कर अपना भाई बना लिया। आस पास की उम्र वालों में यही संबंध बनता है, भाई-बहन का। तबसे यह परंपरा चल पड़ी,

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लखनऊ / दिल्ली । वास्तव में आज का मुख्य पर्व  श्रावणी उपाकर्म है इसका अर्थ है, वेदों के विशेष स्वाध्याय अध्ययन का पर्व। आज श्रावण मास की पूर्णिमा है, इसलिए श्रावणी कहलाती है। उपाकर्म का अर्थ होता है आरंभ करना। प्राचीन काल में आज के दिन यह वेद प्रचार अध्ययन स्वाध्याय का पर्व आरंभ होता था, इसलिए इसे श्रावणी उपाकर्म कहते हैं। और आज से आरंभ हो कर ०४ महीने तक चलती है।

परन्तु रक्षाबंधन का पर्व बाद में इसमें जुड़ गया। इतिहास में ऐसा बताते हैं, कि कभी चित्तौड़गढ़ की महारानी कर्णावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर, गुजरात के राजा से अपनी रक्षा का निवेदन किया था। हुमायूं राजा ने उसे स्वीकार कर लिया और महारानी कर्णावती की रक्षा की।

महारानी कर्णावती और हुमायूं राजा लगभग बराबर की या आस पास की उम्र के होंगे। इस कारण महारानी कर्णावती ने राजा हुमायूं को राखी बांध कर अपना भाई बना लिया। आस पास की उम्र वालों में यही संबंध बनता है, भाई-बहन का। तबसे यह परंपरा चल पड़ी, कि जब किसी स्त्री को, रक्षा के लिए किसी पुरुष की सहायता की आवश्यकता पड़ती थी, तो वह महारानी कर्णावती का अनुकरण करते हुए उस पुरुष को रक्षा सूत्र अर्थात प्रतीक रूप में एक धागा बांध कर उसे अपना रक्षक बना लेती थी।

आरंभ में क्योंकि महारानी कर्णावती ने राजा हुमायूं को भाई बनाया था, तो लोगों में यह प्रथा चल पड़ी, कि यह भाई बहन का पर्व है। जबकि यह प्रथा भाई बहन के संबंध की द्योतक नहीं है, बल्कि रक्षक और रक्ष्य के संबंध की द्योतक है। इस नियम के आधार पर पत्नियां अपने पति को रक्षा सूत्र बांध सकती हैं। बहनें भाइयों को रक्षा सूत्र बांध सकती हैं। माताएं अपने बेटों को रक्षा सूत्र बांध सकती हैं, और उन्हें अपने कर्तव्य की याद दिला सकती हैं, कि उन पुरुषों को अपने घर की स्त्रियों की रक्षा करनी है।

परंतु आज कल का प्रचलन में तो यही है कि बहनें भाई को राखी बांध कर उन्हें अपना रक्षक होने का वचन स्मरण कराती हैं। भाई बहन तो समान उम्र के कारण एक संबंध मान लिया जाता है। यह रक्षा सूत्र का त्योहार सिर्फ एक दिन का नहीं है। यदि सब लोग आज के पर्व को केवल एक दिन तक सीमित न रखकर ऐसा विचार करें, कि हमें यह रक्षा का वचन प्रतिदिन और पूरे वर्ष निभाना है, तो देश दुनिया में बहुत अधिक शांति एवं निर्भयता होगी और यह धरती स्वर्ग बन जाएगी।

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