B या C …… BSP की बॉल पर कौन होगा बोल्ड?

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एक जमाने में उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा रहे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में वैसे तो मुख्य मुकाबला सत्तारुढ़ कांग्रेस और सत्ता में आने का सपना देख रही भारतीय जनता पार्टी के बीच ही है लेकिन कहीं-कहीं बहुजन समाज पार्टी ने कड़ी मेहनत से मुकाबले को तिकोना बना कर दोनों दलों के राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। देखा जाए तो चुनावों में प्राप्त वोटों के प्रतिशत के लिहाज से बसपा राज्य में हमेशा ही तीसरी ताकत के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है। एक समय तो राज्य की 70 सदस्यीय विधानसभा में उसके आठ विधायक हुआ करते थे। दरअसल, दरअसल सूबे के तराई क्षेत्र में हरिद्वार और उधम सिंह नगर दो ऐसे जिले हैं जिनमें दलितों और अल्पसंख्यकों की काफी बड़ी तादाद है। इसी वजह से दोनों जिलों में बसपा का खासा जनाधार है। इन दो मैदानी जिलों के अलावा राज्य के बाकी 11 जिलों मे भी बसपा को अच्छी संख्या में वोट मिलते रहे हैं। राज्य में विधानसभा के पहले और दूसरे चुनाव में हरिद्वार जिले में नौ और उधम सिंह नगर जिले में सात सीटें थीं। पूरे देश में 2001 की जनगणना के आधार पर जब 2008 में विधानसभा और लोकसभा सीटों का परिसीमन हुआ तो दोनों ही जिलों दो-दो विधानसभा सीटें बढ गईं। इस परिसीमन के बाद बसपा के जनाधार में थोड़ी कमी आई है लेकिन हरिद्वार और उधम सिंहनगर जिले में तो वह अभी भी एक बड़ी ताकत है।
वर्ष 2002 में राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में बसपा को हरिद्वार जिले की नौ में से पांच सीटों लालढॉग, बहादराबाद, इकबालपुर, मंगलौर व लंढौरा और उधमसिह नगर जिले की सात में से दो सीटों सितारगंज, पंतनगर-गदरपुर सहित कुल सात सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इनमें पंतनगर के अलावा सभी छह सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें थीं। दूसरे विधानसभा चुनाव में भी बसपा ने अपना पुराना प्रदर्शन दोहराया। तब भी वह हरिद्वार जिले में छह सीटें लालढॉग, बहादराबाद, भगवानपुर, इकबालपुर, मंगलौर व लंढौरा (अनुसूचित जाति आरक्षित) और उधमसिह नगर जिले में दो सीटें सितारगंज (अनुसूचित जाति आरक्षित) व पंतनगर-गदरपुर सहित कुल आठ सीटें जीतने में कामयाब रही थी। राज्य में जब 2008 के परिसीमन के बाद 2012 में तीसरा विधानसभा चुनाव हुआ तो बसपा की राजनीतिक ताकत काफी घटी। तीसरे विधानसभा चुनाव में बसपा को उधम सिंह नगर में दो सीटें बढ़ने के बाद भी नौ में से एक भी सीट नहीं मिली। हरिद्वार जिले में भी नए परिसीमन के बाद दो विधानसभा सीटें बढ़ने से कुल 11 सीटें हो गईं। लेकिन यहां भी बसपा को केवल तीन सीटों भगवानपुर (आरक्षित), झबेड़ा और मंगलौर सीटों पर ही कामयाबी मिली। इनमें भी भगवानपुर सीट पर हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस ने जीत ली। उसके बाद बसपा के पास महज दो ही सीटें रह गई। हालांकि इस चुनाव में हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों में बसपा को मिले वोटों का प्रतिशत 21.83 रहा’ हरिद्वार जिले में उसे 25.80 प्रतिशत वोट मिले जबकि उधम सिंह नगर में उसके वोटों का प्रतिशत 17.87 रहा। राज्य के अन्य 11 जिलों में भी बसपा को 10.11 प्रतिशत वोट मिले। उसने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी राज्य की पांच में से चार सीटों पर अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज कराई।
इस बार भी बसपा ने राज्य की सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। अपनी दमदार उपस्थिति से बसपा के उम्मीदवार कई सीटों पर कांग्रेस और भाजपा का खेल बिगाड़ने की स्थिति में हैं। हरिद्वार और उधम सिंह नगर में जहां बसपा का एक निश्चित जनाधार है, वहां कांग्रेस के लिए ज्यादा परेशानी है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि बसपा के कारण ही कांग्रेस इन दो जिलों में पिछले तीनों विधानसभा चुनावों में भाजपा के मुकाबले पिछड़ती रही है। इस बार बिगडे़ हुए समीकरण को कांग्रेस के पक्ष मे साधने के लिए ही मुख्यमंत्री हरीश रावत को दोनों जिलों की एक-एक विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना पड़ रहा है। यही कारण था कि हरीश रावत ने हरिद्वार सीट के साथ-साथ किच्छा को भी चुना जिससे वे कांग्रेस के खाते में दोनों सीटें डाल सकें। किन्तु बसपा के स्थानीय प्रत्याशी के पक्ष में मुस्लिम और दलित समीकरण के एकजुट होने से हरीश रावत की परेशानियां बढ़ गयी हैं। किच्छा विधानसभा से बसपा प्रत्याशी राजेश प्रताप सिंह से उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है।अब 11 मार्च को ही ये पता चल पायेगा कि मुख्यमंत्री हरीश रावत मैडम माया की गुगली में हिट विकेट होते हैं या आखिरी बॉल पर छक्का मारकर सत्ता का सिंहासन दूसरी बार अपने नाम करते हैं।

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