मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है कि मैं आपको मुरादाबाद की पुलिस और हेल्थ वर्कर्स की हत्या करने आयी वहां के मुसलमानों की करतूतों का जिक्र करुं या उस मुजरिमाना मानसिकता की लीपापोती करने के लिए मैं मातम करुं। इस काम के लिए टीवी चैनल या अलग अलग फोरम पर बैठे मुजरिम मानसिकता के लोग अधिक सक्षम हैं जो लगातार मुजरिमों और मासूमों के बीच की गहरी रेखा को मद्धम करने के लिए कभी आंसुओं का मातम करते हैं तो कभी किसी अन्य धार्मिक समुदाय की कोई घटना की आड़ में इसे न्याय संगत ठहराने का प्रयास करते हैं इसलिए मुुझे ऐसे किसी गिरोह या गैंग का हिस्सा नहीं बनना है, मुुझे तो वही कहना है जो भारत के कानून के मुआफिक है और पैग़म्बर मुहम्मद की शिक्षाओं के ऐन मुुुताबिक है।
तकरीबन 1440 साल पहले की बात है पैग़म्बर मुहम्मद को अपने शहर मक्का से निकाल दिया गया था वो मदीना आ चुके थे मदीना की बार्डर पर कुबा नामक बस्ती में उन्होंने सबसे पहली मस्जिद बनाई। चूंकि मैं वहां जा चुका हूं और मदीना एवं कुबा के इतिहास एवं भूगोल से वाकिफ हूं इसलिए बता रहा हूँ।
पैग़म्बर ए इस्लाम का मामूल था कि वो हर हफ्ते मदीना से कुबा वाली मस्जिद में इबादत करने जाते थे। एक दिन वो मदीना से कुबा जा रहे थे कि एक बुजुर्ग महिला रास्ते में अपने सामानों की गठरी के साथ बड़ी हैरानी परेशानी में इधर उधर देख रही थी कि कोई आ जाये तो उससे मदद लेकर मदीना से निकल जाये, पैग़म्बर मुहम्मद उस बुज़ुर्ग महिला के पास गए उनसे पूछा, अम्मा क्या बात है आपको कहीं जाना है क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं?
बुज़ुर्ग महिला ने कहा, हॉ बेटा मैं ये शहर छोड़कर कुबा जाना चाहती हूं। ठीक है, लाईये ये गठरी मुझे दे दीजिये मैं कुबा जा रहा हूँ वहां तक आपको पहुंचा दूंगा।
उस महिला की गठरी पैग़म्बर मुहम्मद ने अपने सिर पर रखी और कुबा की ओर चल पडे, रास्ते में पैग़म्बर मुहम्मद ने पूछा, अम्मा आप मदीना जैसा बड़ा शहर छोड़ कर कुबा जैसी छोटी बस्ती में क्यों जाना चाहती हैं? अरे क्या बताऊँ बेटा, मदीना में एक मुहम्मद नाम का जादूगर आया है जो लोगों को सम्मोहित कर लेता है जो उससे मिल जाता है वो उसकी बातों में आ जाता है वो उसी का हो जाता है इसलिए मैं ये शहर छोड़ कर जा रही हूं ताकि उस मुहम्मद को मैं कभी ना देख पाऊं।
बातें करते करते वो दोनों कुबा पहुंच गए, अम्मा ये आ गया कुबा, पैग़म्बर मुहम्मद ने कहा। उस बुज़ुर्ग महिला ने उनको दुआयें दीं और नसीहत दी, बेटा तुम बहुत अच्छे इंसान हो लेकिन मेरी एक बात मानना, तुम उस मुहम्मद से बच कर रहना।
अम्मा मैं चलूँ! अरे तुम से मैंने तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं, उस महिला ने कहा।
अम्मा, मेरा नाम मुहम्मद है आप जिस मुहम्मद की बात कर रही थीं वो मुहम्मद मैं ही हूँ।
ये वाकिया मैंने इसलिए बताया कि तुम जान सको कि तुम्हारे पैग़म्बर का व्यवहार और बर्ताव अपने विरोधियों के साथ भी प्रेम त्याग और समर्पण का था।
और तुम? तुम्हारा व्यवहार?
जानबूझकर लोगों को तकलीफ पहुंचाते हो, लोगों को लहुलुहान करते हो, जहाँ तहाँ थूकते हो, शासन प्रशासन के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए भीड़ लगा कर नमाज पढते हो, जब कोई टोकता है तो बेशर्मी-बेहयाई के साथ डिफेंड करते हुए उन्हें जाहिल कह कर अपनी जहरीली मानसिकता पर मखमली पर्दा डाल देते हो, फिर कहते हो कि प्रधानमंत्री को उनसे बात करनी चाहिए उन्हें भरोसा देना चाहिए।
क्या तुम्हें ये भी याद नहीं कि प्रधानमंत्री ने देशवासियों को भरोसे में लेने के लिए ही देश के नाम संबोधन किया था, और एक बार नहीं तीन तीन बार संबोधित किया, तो क्या उस संबोधन में तुम शामिल नहीं हो ? क्या तुम्हारे लिए प्रधानमंत्री अलग से संबोधन देंगे? क्या भरोसा चाहिए तुम्हें? क्या प्रधानमंत्री ने ये नहीं कहा था कि देश के प्रत्येक नागरिक की जान बचाने के लिए लॉकडाउन किया जा रहा है? तो क्या प्रधानमंत्री के “प्रत्येक नागरिक” में तुम शामिल नहीं थे? अब और किस तरह का भरोसा चाहिए तुम्हें ?
ज्यादा पुरानी बात नहीं है CAA आंदोलन पर जब तुम सड़कों को घेर कर बैठे थे तब क्या प्रधानमंत्री ने नागरिकता संशोधन कानून पर तुम्हें भरोसा नहीं दिया था या भारत के गृहमंत्री ने भरोसा नहीं दिया था? जरा सोच कर बताना, तुमने प्रधानमंत्री की बातों पर देश भर के शाहीन बागों की सड़कों को खाली किया था या पुलिस की बेतों के डर से खाली किया था?
दरअसल तुम्हें हर उस चीज में साजिश नजर आती है जो देशवासियों में बराबरी विकास समभाव और सद्भाव की बात करती है। तुम्हे आजादी से पहले गांधी में साजिश नजर आती थी, आजादी के बाद नेहरू में साजिश नजर आने लगी, इंदिरा के दौर में नसबंदी में साजिश नजर आने लगी, राजीव के दौर में शाहबानों में साजिश लगने लगी। तुम्हें नरसिंह राव की उदारीकरण साजिश लगने लगी, मनमोहन के दौर में आतंकी गतिविधियां में तुम्हें अपने खिलाफ साजिश लगने लगीं और नरेंद्र मोदी के दौर में तो, खैर। क्या ही कहें सब कुछ साजिश ही साजिश है।
कोरोना काल में इरान से भारतीय मुसलमानों को लाना मोदी सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन उन्हीं मुसलमानों को क्वारंटीन के लिए निर्देश देना, ये मोदी की साजिश है! कोरोना पैकेज के लिए हर बैंक अकाउंट में पैसे देना मोदी की जिम्मेदारी है उन पैसों को निकालने के लिए कागज दिखाने में तुम्हें कोई गुरेज नहीं लेकिन NPR में तुम्हारे आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए तुम्हारे बारे में जानकारी लेना, ये मोदी की साजिश है!
वाह, गजब का पैमाना बना रखा है तुम लोगों ने! दरअसल तुम ये समझ ही नहीं पा रहे हो कि तुमने अपनी जिंदगी और बुद्धि की डोर बेहद शातिर, सामंती और विभाजन कारी निर्देशकों के हाथों में सौंप रखी है तुम उनके रंगमच की महज कठपुतली हो, वो जब जहाँ जैसे चाहते है तुम्हे नचाते है। वो तो रसिक और रहजन लोग हैं भरमाना, गाना, बजाना और नचाना उनका खानदानी शौक है। अब फिर से उन्होंने एक महफ़िल सजाई है और उनकी ताल पर उसमें मुजरा करते हुए तुम हो।
मुझे आई ना जग से लाज
मैं इतना जोर से नाची आज.. कि घूंघरु टूट गए।
और जब घूंघरु टूट कर बिखर जाते हैं तो बोलते हो कि ये मोदी की साजिश है।