ना जाने क्यों, हो ना जाने क्यों। होता है ये जिंदगी के साथ अचानक ये मन किसी के जाने के बाद, करे फिर उसकी याद छोटी-छोटी सी बात, ना जाने क्यो….. ।
छोटी-छोटी ना जाने कितनी बातें मन के किसी कोने में होती है। छोटी-छोटी सी बातें जो कभी गुदगुदाती हैं, कभी आँखों नम कर जाती हैं। इन्हीं छोटी-छोटी बातों के बड़े गीतकार थे योगेश।
चमक-दमक भरी सिनेमा की दुनिया एक बड़ा ही अनूठा किरदार होता है गीतकार। वो हमारे मन के किसी कोने में चुपचाप बैठा रहता है और हमारी धड़कनों की तर्जुमानी करता रहता है। हम कभी सोचते भी नहीं है कि होठों पर बरबस जो बोल आ गये हैं, वो आखिर लिखे किसने हैं। योगेश ने उम्र भर हमसे यही रिश्ता निभाया और अपने जाने के बाद भी निभाते रहेंगे।
सत्तर के दशक में हिंदी सिनेमा में बहुत कुछ हुआ। अमिताभ बच्चन एंग्री यंगमैन बनकर देश की बड़ी आबादी के इमैजिनेशन को बदल रहे थे। टीन एज लव सनसेशन के रूप में ऋषि कपूर दस्तक दे चुके थे। जंजीर और बॉबी से लेकर सत्यम शिवम सुंदरम तक बहुत कुछ वायलेंट और बोल्ड हो रहा था। लेकिन इन सबके बीच सिनेमा की एक सुंदर धारा भी चुपचाप बह रही थी।
ये धारा थी बासु चटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे फिल्मकारों की। जो सादगी, सुंदरता और छोटे-छोटे सपने सत्तर के दशक में भारतीय मध्यमवर्गीय जीवन में थे, उन्हीं की मिरर इमेज थी, छोटी सी बात, मंजिल, रजनीगंधा और बातों-बातों में जैसी दर्जनों फिल्में।
रजनीगंधा के फूल सजाती विद्या सिन्हा और घर का बड़ा ट्रांजिस्टर पोछकर गुनगुनाती गृहिणी। अमोल पालेकर और टीना मुनीम की मुंबई लोकल की लव स्टोरी और वो `कहते सुनते बातों-बातों में प्यार’ का हो जाना, चर्चगेट से लेकर मरीन ड्राइव तक बारिश में भीगते मिडिल क्लास अमिताभ बच्चन और मौसमी चटर्जी और बैकग्राउंड में चलता `रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाये मन।’ जहाँ सत्तर के दशक की सुंदर और सादा फिल्में हैं, वहीं योगेश भी हैं।
योगेश हमारे माता-पिता, चाचा-चाची और मामा-मामी की रोमैंटिक जिंदगी के सहयात्री रहे हैं। लेकिन बातों-बातों में और आनंद के गाने हम से बाद की पीढ़ियों यानी आज के बच्चे भी गुनगुनाते हैं। अस्सी के दशक के आते-आते हिंदी सिनेमा के सादा और सुंदर दशक के अवसान की वेला शुरू हो गई और गीतकार योगेश भी धीरे-धीरे परिदृश्य से बाहर हो गये।
अब 77 साल की उम्र में उनके दुनिया छोड़ने की खबर आई है। मैंने सोचा कि योगेश के बारे में कुछ लिखूँ या ना लिखूँ क्योंकि ईमानदारी से कहूँ तो मैं उनके बारे में ज्यादा नहीं जानता हूँ। फिर लगा कि कुछ ना जानकर भी बहुत कुछ जानता हूँ।
कभी जब यूँ ही हुई बोझिल साँसे
भर आईं बैठे-बैठे जब यूँ ही आँखें
तभी मचलकर प्यार से चलके
छुए कोई मुझे पर नज़र ना आये
योगेश जी को नमन