लखनऊ । और कुछ नहीं मिला जो पत्रकार बन गये? क्या मिलता है कभी इनके पीछे तो कभी उनके पीछे मारे मारे फिरते हो!! अगर आप पत्रकार हैं तो पब्लिक के ऐसे सवालों से जरूर दो चार हुए होंगे, लेकिन उसी पब्लिक को तब पत्रकार चाहिए .होता है जब किसी दबंग व्यक्ति द्वारा आपके अधिकार का हनन किया जाता है तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है लेकिन तब वो आपके लिए खड़े मिलते हैं। . जब प्रशासन के किसी अधिकारी /कर्मचारी द्वारा आप परेशान किये जाते हैं तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है? तब वो आपके साथ मिलते हैं।
जब आप अपनी बात प्रशासन तक पहुँचाना चाहते हैं तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ? तब वो आपके साथ खड़े मिलते हैं। . जब कोई लेखपाल,कोटेदार, प्रधान या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आपका हक छीनने की कोशिश की जाती है तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?तब वो अपनी जान हथेली पर लिये खड़े मिलते हैं। .जब आप किसी राजनेता, अधिकारी तक आप की आवाज़ पहुंचाने की जरूरत पड़ती है ? तब एक पत्रकार चाहिए होता है।
लेकिन जब एक पत्रकार समाज में व्याप्त बुराइयों पर लिखते, बोलते गुंडों के निशाने पर आ जाता है जब उसे अपने घर वालों की चिंता सताने लगती है तब एक पत्रकार को आपकी जरुरत पड़ती है तब आप नही मिलते। ? आप कहीं नहीं मिलते! आप मिलते हैं तो उसी दबंग के साथ उसी कर्मचारी, अधिकारी नेता के साथ, जिसके खिलाफ एक पत्रकार आजीवन लड़ता रहा और लड़ते लड़ते सब कुछ लुटा बैठा।