कोरोना संकट और फिर लॉकडाउन के कारण काम-धंधा मंदा है, इसलिए कोई साइड बिजनेस बहुत जरूरी है। मैंने भी सोच लिया है कि मैं वीर कोरोना योद्धा सम्मान-पत्र को थोक के भाव से बांटने मतलब बेचने का सराहनीय काम करूंगा।
शुल्क मात्र बीस रुपए। बीस रुपए इसलिए कि एक सम्मान पत्र के छपाई का खर्च दस रुपए पड़ रहा है, अब बिजनेस किया है तो दुगुना फायदे की बात सोचना बनता है ! दस का बीस, वो भी कैश, वो भी तुरंत, वो भी आसानी से। इस लॉकडाउन में इतना जल्दी पैसा तो कोई पकौड़ा बेच कर भी नहीं कमा सकता है।
मामला ये है कि, जब से लॉकडाउन शुरू हुआ तब से अब तक जिसे देखिए वही सोशल मीडिया पर गदहा-घोड़ा संस्था द्वारा वीर कोरोना योद्धा सम्मान-पत्र लिए घूम रहा है, जैसे लग रहा है कि तोप चला कर आ रहे हैं ! ये झूठी प्रशंसा किसी और के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए है। जिसकी खुद की अपनी जिंदगी डर-डर के बीत रही है, वो नाम चमकाने के लिए सम्मान-पत्र बांट और ले रहा है।
दरअसल, अब आम आदमी जो अपने जानने-पहचानने वालों और समाज को दिखाने के लिए उनकी नजर में खास बनना चाहता है, उसे छुटभैये टाइप की तथाकथित सामाजिक संस्थाएं कैच कर रही हैं। उस आम आदमी को भी लगता है कि ये लहसुन, प्याज, आलू, आटे के छोटे-मोटे पैकेट बांटकर उसने जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी हैं, वीर कोरोना योद्धा सम्मान-पत्र उसी का परिणाम है !
दबी-कुचली और गली-मोहल्ले वाली संस्था के अध्यक्ष उस आम आदमी से सहायता के नाम पर राशन पैकेट या सहयोग राशि लेकर उसे सम्मान-पत्र पकड़ा दे रहे हैं। फिर संस्थाएं अपने बैनर पर किसी राजनैतिक व्यक्ति या प्रशासनिक अधिकारी को राशन पैकेट या चेक पकड़ाकर अपना फोटो खिंचवाकर उस मरी हुई संस्था को जिंदा करने के प्रयास में लगी हुई हैं, जिसमें वह सफल भी हो रहे हैं।
इन सबमें फंसता नजर आ रहा है वो लोवर मिडिल क्लास का आदमी, जिसके लिए सम्मान और प्रतिष्ठा उसके जीवन भर की पूंजी है। जो मदद मांगने आए लोगों को मना नहीं कर पा रहा है और खुद के जरूरत पड़ने पर किसी से मांग भी नहीं पा रहा है। आम आदमी से ऊपर अपर मिडिल और हाई क्लास का आदमी परिवार के साथ घर में बैठकर तरह-तरह के व्यंजनों का जायका ले रहा है और उसे पचाने के लिए टीवी पर योग सीख रहा है ! उसने कुछ रुपए पीएम-कोविड फंड में ऑनलाइन ट्रांसफर के माध्यम से डोनेट किए और उसके स्क्रीनशॉट्स को ही सम्मान-पत्र मानकर फेसबुक पर चिपका दिया।
केंद्र सरकार के पास सोशल डिस्टेंसिंग का प्रचार करने के अलावा कोरोना की कोई दवा नहीं है, देखने से ये भी लगता है कि अलग-अलग राज्य सरकार के मुखिया कोरोना से बचाव के लिए दिन-रात एक किए है, मगर उनके सत्ताधारी नेता क्रिकेट खेलने और अपने घरों में बैठकर चटकारे मारने में व्यस्त हैं, जिन्हें संस्था वाले सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने का सम्मान-पत्र घर तक पहुंचा आते हैं। विपक्ष सड़कों पर उतर कर भूखों को खाना बांट रहे हैं, और प्रवासियों को अपने घर जाने के लिए बस रूपी दोपहिया वाहनों की व्यवस्था कर रहे हैं ! जिसके लिए उन्हें चुनाव के समय जनता द्वारा सम्मान-पत्र चाहिए होगा।
इन सबके बीच फिल्मों का एक विलेन सोनू सूद हीरो बनकर सामने खड़ा है, जो बिना छुए सरकारी तंत्र और उनकी व्यवस्थाओं के गाल पर तमाचा मार रहा है। उसके पास कोई कोरोना वैक्सीन नहीं, कोई पीपीई किट नहीं, कोई कोरोना फंड नहीं, वो किसी सामाजिक संगठन से नहीं और वो किसी राजनैतिक दल से भी नहीं है। उसके बावजूद उस शख्स ने हज़ारों लोगों की बिना देर किए मदद की, पता है कैसे ? क्योंकि उसके पास संकल्प शक्ति थी, जिसके लिए उसे किसी प्रमाण-पत्र या सम्मान-पत्र की जरूरत नहीं।
हालांकि, अब मैंने सोचा ही है तो सम्मान-पत्र का बिजनेस जरूर करूँगा ! क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि आत्मनिर्भर बनो और कोरोना आपदा के साथ-साथ अवसर भी है। मैंने आज तक प्रधानमंत्री जी की किसी बात को टाला नहीं है।