बलिया में शव को था पांच सौ और हजार के छुट्टों का इंतेजार

हालांकि सरकार ने सरकारी शवदाह गृहों  पर पुराने नोटों को चलाने की अनुमति तो दी है पर बलिया जैसे छोटे जनपदों में ऐसा कोई सरकारी शवदाह स्थल नहीं है| घाट पर कर्मकांड कराने वाले पुरोहित भी मानते हैं की 500 और 1000 की नोट बंदी से शवदाह के लिए लोंगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है|

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लखनऊ / बलिया । 500 और 1000 की नोट बंद हो जाने के बाद पूरा देश बैंकों और एटीएमों की तरफ उमड़ पड़ा है| रुपयों की किल्लत ने आम आदमी की परेशानी बढ़ा दी है| सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोंगो को हो रही है जिनके परिजन का देहांत हुआ है और उन्हें शव की चिता को अग्नि देनी है| अब दुखी परिवार से लकड़ी वाले 500 और 1000 की नोट लेने को तैयार नहीं  हैं|

ग़मों का पहाड़ क्या होता है ये उन लोंगों से पूछिये जिनके घर में किसी की मृत्यू हुई है| और उनके पास रूपये रहते हुए भी अंत्येष्ठी के लिए लकड़िया भी नहीं खरीद सकते| ऐसा ही वाकया  बलिया के महावीर घाट पर सामने आया है| यहाँ गंगा नदी पर लोग अपने  मृतक परिजन की अंत्येष्ठी के लिए धुप की लकड़ियां खरीदते हैं| मृतकों के परिजनों का आरोप है की धुप की लकड़ियां बेचने वाले 500 और 1000 की नोट नहीं ले रहे हैं|

एटीएम सूखे पड़े हैं और बैंकों में रुपए निकालने के लिए घण्टों की लाइन में बारी का इंतेजार करना पड़ रहा है| ऐसे में शव को अंतिम विदाई दे या दुःख भरी घड़ी में लाइन का हिस्सा बनें| बलिया के महावीर घाट पर शवों की अंत्येष्ठी की लकड़ियां बेचने वाले दुकानदार बताते हैं कि आमतौर पर बलिया के गंगा नदी के किनारे 40 से 50 शव प्रतिदिन अंत्येष्ठी के लिए आते हैं|

हालांकि सरकार ने सरकारी शवदाह गृहों  पर पुराने नोटों को चलाने की अनुमति तो दी है पर बलिया जैसे छोटे जनपदों में ऐसा कोई सरकारी शवदाह स्थल नहीं है| घाट पर कर्मकांड कराने वाले पुरोहित भी मानते हैं की 500 और 1000 की नोट बंदी से शवदाह के लिए लोंगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है|

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