लखनऊ / प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से सवाल किया है कि ईमानदार गरीब नागरिकों की गाढ़ी कमाई साइबर ठगी से कैसे सुरक्षित हो। कोर्ट ने कहा कि साइबर ठग दीमक की तरह पूरे देश को खोखला कर रहे हैं। देश की आर्थिक स्थिति कमजोर कर रहे हैं। साइबर ठगी में पैसा न डूबे इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। बैंक व पुलिस की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने नीरज मंडल उर्फ राकेश की अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि एसपी क्राइम उप्र, एसपी क्राइम प्रयागराज व निरीक्षक साइबर क्राइम से प्रदेश व प्रयागराज में एक लाख से अधिक व एक लाख से कम की साइबर ठगी के दर्ज अपराधों व उनकी स्थिति की जानकारी मांगी गई थी, लेकिन अधिकारियों के हलफनामे संतोषजनक नहीं है। उससे लगता है बैंक व पुलिस दोनों गंभीर नहीं है। सही प्रयास नहीं किए गए। लोगों की जीवन की पूंजी लुट जाती है और उनसे कह दिया जाता है कि ठगी दूरदराज इलाके से हुई है। नक्सल एरिया में पुलिस भी जाने से डरती है। धन वापसी मुश्किल है बैंक व पुलिस की सुस्ती का लाभ साइबर अपराधी उठाते हैं।
कोर्ट ने कहा जब जज भी सुरक्षित नहीं तो आम आदमी के बारे में क्या कहा जाए। राज्य सरकार को ठगी रोकने और बैंक व पुलिस की जवाबदेही तय करनी चाहिए। सपूर्व जज से एक लाख की ठगी हुई। गिरफ्तार अभियुक्त ने कहा गिरोह काम करता है। ये गाढ़े समय या शादी आदि के लिए जमा पैसे निकाल कर ले जाते हैं और लोगों के अरमानों पर पानी फेर देते हैं।
बिचौलिए लोगों का पैसा न खा जाए, इसके लिए प्रधानमंत्री ने जन-धन खाते खुलवाए। सरकारी योजनाओं का पैसा खाते में जमा किया जा रहा है। कोर्ट काला धन रखने वाले सफेदपोश की बात नहीं कर रही, ईमानदार गरीब नागरिकों की बात कर रही है, जिनका पैसा बैंक में जमा होता है, जो देश के विकास में खर्च होता है। साइबर ठगों की वजह से गरीब का पैसा बैंक में भी सुरक्षित नहीं है। जमा पैसे की गारंटी लेनी होगी। जिम्मेदारी तय हो कि गरीब का पैसा कैसे वापस आए। इसकी जिम्मेदारी किस पर तय हो। ग्राहकों के पैसे कैसे सुरक्षित हों, यह जिम्मेदारी तय किया जाना जरूरी है।