एक सेशन… संग, द डेस्टिनी आफ नेशन। सरकार बहादुर! स्कूलों में डॉक्टर्स भी नियुक्त कीजिये ताकि भविष्य का भारत हेल्दी हो

देश के नवनिर्माण में हर भारतीय का यथासम्भव योगदान है l कुछ को हम जानते हैं लेकिन कुछ नायाब नगीने देश की बुलंद इमारत की नींव का पत्थर बन जाते हैं लेकिन बुलंद इमारत की बेमिसाल बुनियाद को याद रखना कृतज्ञता की पहचान है l इसलिए  द डॉन मीडिया नेटवर्क " ने ऐसे नायकों से आपको परिचित कराने के लिए एक विशेष अभियान, एक सेशन... संग, द डेस्टिनी आफ नेशन ( The DON) का शुरू किया है। 

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हम आज जिस शख्सियत से आपको रुबरु कराने जा रहे हैं उनका जन्म पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक पिछड़े जिले बस्ती में हुआ l उनका बचपन संघर्षों एवं परिश्रम की अनकही दास्तान है। पढ़ने और सीखने की चाह कभी उनका रास्ता नहीं रोक पायी। रोजाना 18 किलोमीटर साइकिल चलाकर उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। बस्ती जिले के गवर्नमेंट इंटर कॉलेज से उन्होंने बारहवीं (विज्ञान वर्ग बॉयलॉजी) की परीक्षा उत्तीर्ण की और परंपराओं एवं समाज की सोंच से अलग हट कर एमबीबीएस के बजाय बीडीएस में जाने का फैसला किया।

आपको बता दें कि 15 साल के बच्चे की जिस जिद ने उस वक्त की बनी बनाई लकीर पर चलने से इंकार कर दिया था उसी जिद ने उन्हें तत्काल भारत का ” द डेस्टिनी आफ नेशन” बनाया। हमारे आज के द डॉन हैं, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के डिपार्टमेंट आफ डेंटल साइंसेज के प्रोफेसर डॉ जितेंद्र राव। इनसे बातचीत की है हमारी संवाददाता आरिशा सिद्दीकी ने,

तत्काल भारत : नमस्कार डॉ साहब। इससे पहले कि सवाल – जवाब का सिलसिला शुरू हो तत्काल भारत के द डॉन यानि “द डेस्टिनी आफ नेशन” के चयन के लिए आपको बधाई।

डॉ जितेंद्र राव : शुक्रिया आरिशा, तत्काल भारत को बहुत शुभकामनाएं।

तत्काल भारत : दांत हमारे शरीर के लिए क्या महत्व रखते हैं यह हम सब जानते हैं लेकिन यह दांत उम्र भर हमारे साथ रहें और मोतियों से चमकते रहें इसके लिए हमें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए? इस विषय पर तो हम बात करेंगे ही लेकिन डॉ साहब का बचपन भी बड़ा ही चमकदार रहा है l तो पहले हम उनके बचपन से ही शुरूआत करते हैं।

डॉ जितेंद्र राव : हर एक बच्चे की अपनी एक जिंदगी होती है और हर एक जिंदगी की अपनी एक विशेष खूबी यानि USP होती है और पेरेंट्स उसके मुख्य कर्णधार होते हैं । मेरा जन्म गॉव में हुआ और मेरा बचपन गांव में गुजरा। मेरे जीवन में बहुत चुनौतियां आईं और हर गुजरते दिन के साथ वो चुनौतियां गहरी होती गयीं l लेकिन मैंने मेहनत का साथ नहीं छोड़ा। विभिन्न समस्याओं का सामना किया। आरिशा आपको बताऊं मेरा स्कूल काफी दूर था मैं प्रतिदिन 18 किलोमीटर साइकिल चला कर स्कूल जाता था l घर लौटते – लौटते देर शाम हो जाती थी। अम्मा मेरा रास्ता देखा करतीं थीं और खाने का पहला कौर अपने हाथों से खिलाती थीं

तत्काल भारत : आमतौर पर ऐसा होता नहीं है कि बारहवीं में बॉयलॉजी लेने वाले स्टूडेंट्स एमबीबीएस के लिए पैशनेट ना हों लेकिन आपने क्या सोंचकर बीडीएस को प्राथमिकता दी?

डॉ जितेंद्र राव : हा हा हा (हंसते हुए सवाल करते हैं) आरिशा अगर मैंने एमबीबीएस चुना होता तो क्या आप मुझे अपने अखबार का द डेस्टिनी आफ नेशन यानि द डॉन बनातीं? दरअसल बचपन से ही मैं खिलाड़ी टाइप का रहा। मैं स्कूल में अक्सर एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में भाग लेता था। जिला स्तर पर फुटबॉल खेला। बस्ती के गवर्नमेंट इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की  उसके बाद बैचलर आफ डेंटल साइंस की पढ़ाई करने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। यहीं से मास्टर्स किया और यहीं एक टीचर एवं डाक्टर के रूप में कार्यरत हूँ। आप कह सकती हैं कि यही मेरी डेस्टिनी थी।

तत्काल भारत : डॉ साहब आपसे बात करते करते मैं फिलोस्फिकल सी हो गयी हूँ l मुझे लग रहा है मैं किसी डॉक्टर के बजाय किसी फिलोस्फर से बात कर रही हूँ।

डॉ जितेंद्र राव : हा हा हा… आरिशा, तड़क – भड़क से दूर, आडंबर एवं दिखावे से दूर मुझे सीधी सादी जिंदगी पसंद है और किस्मत ने मेरी रोज़ी- रोटी भी ऐसे क्षेत्र में दी है जहां बीमारी का सत्य महसूस करना होता है l उस बीमारी को ठीक करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और सहानुभूतिपूर्वक हमें मरीजों की सेवा करनी पड़ती है। इन्हीं चार शब्दों सत्य, संघर्ष सहानुभूति, एवं सेवा के माध्यम से हमें अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त होता है l यही अध्यात्म हममें किसी फिलोस्फी के लिए प्रेरित करता है।

तत्काल भारत : डॉक्टर साहब इससे पहले कि हम थोड़े सीरियस सवालो पर आयें एक फनी सवाल हैं l बिना दांतों के भी हम जिंदा रह सकते हैं तो फिर प्रकृति ने दांत क्यों बनाये?

डॉ जितेंद्र राव : आरिशा मैं भी थोड़ा सा फन कर लूं!अगर मै आपके सामने वाले दो दांत तोड़ दूं तो क्या आप इतने ही कांफिडेंस से सवाल कर पायेंगी? (हा हा) बहुत ही छोटा सा जवाब है, सुन्दरता में निखार के लिये और व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए। जैसे आंख हमारे व्यक्तित्व के लिए जरूरी हैं वैसे ही दांत भी हमारे व्यक्तित्व के आकर्षण का केंद्र होते हैं। एक बात याद रखिये जब हमारा व्यक्तित्व आकर्षक होता है तभी हमारा आत्मविश्वास प्रबल होता है। प्रकृति ये जरूर चाहती है कि उसकी बनाई हुई कृति आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो इसीलिये उसने दांत बनाये।

तत्काल भारत : डॉक्टर साहब, बच्चों के दांत हेल्दी रहें ऐसे कुछ उपाय बताईये।

डॉ जितेंद्र राव : अंग्रेजी में एक कहावत है “प्रिवेंटिव इज बेटर दैन क्योर*। बच्चों को इलाज की जरूरत नहीं होती है उन्हें प्रिकॉशंस की जरूरत होती है l बच्चों की देखभाल के लिए हम उन्हें उम्र के अनुसार कैटिगराइज कर सकते हैं। प्रिवेंटिस में घर से रोकथाम शुरू करनी चाहिए l जब दांत निकलें तभी से उनको सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही साथ खान- पान पर नियंत्रण रखना चाहिए। माता – पिता बच्चों को ब्रश हैबिट के लिए प्रेरित करें l अगर वो नहीं मानते हैं तो खुद ब्रश कराएं। मेरे बच्चे भी ब्रश करने से कतराते हैं l मैं अपने बच्चों को पकड़ के ब्रश करवाता हूँ l पैरेंट्स को चाहिए कि बचपन से ही अपने बच्चों को गाइड करें । 11, 12 वर्ष के बाद दांतों में कोई समस्या आती है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए l जिससे आने वाले समय में दांतो को मजबूत बनाया जा सके |

तत्काल भारत : डॉ साहब, हमारे बुजुर्गों के दांत आज भी बड़े मजबूत हैं l हालांकि वो फ्री की दातुन किया करते थे l जबकि आज हम खरीदकर टूथपेस्ट करते हैं फिर भी हमारे दांत उतने मजबूत नहीं होते हैं?

डॉ जितेंद्र राव : बहुत ही बढ़िया सवाल किया है आरिशा  हमारे बुजुर्गों के दांत इसलिये मजबूत हैं क्योंकि उनकी खाने की आदत अच्छी थी  वो चना चबाते थे। गन्ना चबाकर उसका रस चूसते थे। दातुन चबाना ठीक है। इससे दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं । आजकल जो टूथपेस्ट आते हैं वह केमिकल से बने होते हैं। जिसमें अधिक मात्रा में कैल्शियम कार्बोनेट होता है। जिससे दांत घिसते है । हम लोग आरामतलब हो गये हैं  टूथब्रश लोगों को आसानी से मिल जाते हैं तो इस्तेमाल कर लेते हैं  हमें ये ध्यान देना है कि टूथब्रश बदल- बदल कर प्रयोग करें  इससे दांत सुरक्षित रहेंगे। पाउडर मंजन का तो बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और यही नहीं टूथपेस्ट का प्रयोग भी चने के दाने के समान करना चाहिए। कभी भी एक कंपनी का टूथपेस्ट नहीं करना चाहिए  टूथपेस्ट बदल – बदल कर ही इस्तेमाल करें।

तत्काल भारत : डॉ साहब खाने के लिए तो दांत जरूरी हैं ही लेकिन गाने के लिए भी दांत जरूरी है।सवाल से पहले अपने पाठकों को ये बता दूँ कि प्रोफेसर जितेंद्र राव लिखते भी हैं l भौतिकवाद के इस दौर में बुजुर्गों की कशमकश के ऊपर कविताएं लिखी है। डॉक्टर साहब ये बताईये किसी की आवाज़ अच्छी है लेकिन उसके दांत नहीं है फिर वो आपकी कविताएं तरन्नुम में कैसे पढ़ पायेगा?

डॉ जितेंद्र राव : (हंसते हुए) इसके लिए तो सबसे पहले उनकी बत्तीसी लगानी पड़ेगी। आपके पाठकों को ये बताते हुए खुशी हो रही है कि लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी एक विश्वविख्यात संस्थान है l यहाँ का दंत विज्ञान विभाग बहुत ही एडवांस टेक्नालॉजी और विशेषज्ञ चिकित्सकों से परिपूर्ण है। दांतों की हर एक समस्या का इलाज यहां बेहद कम खर्च में शानदार क्वालिटी के साथ किया जाता है। इसलिए आरिशा, मेरी कविता के बिना दांत वाले गायक को पहले मेरे पास भेजियेगा ताकि उनका समुचित इलाज किया जा सके।

तत्काल भारत : डॉक्टर साहब हमे कैसे पता चलेगा कि हमारे दांत हेल्दी है या नहीं? इसी से जुड़ा सवाल ये है कि हमारे दांत उम्र भर हमारा साथ दें इसके लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?

डॉ जितेंद्र राव : हर व्यक्ति को छह माह में एक बार डेंटल चेकअप जरूर करना चाहिए l इससे रोग का जल्द पता चल जाएगा और इलाज भी पूरी तरह संभव हो पायेगा । खाना खाने के बाद ब्रश करें या फिर कुल्ला करें। कोई चिपचिपी या मीठी चीज खाने के बाद दो बार कुल्ला जरूर करें । रात को सोने से पहले ब्रश करने की आदत जरूर बनायें l रात का खाना खाने के फौरन बाद ब्रश करें और सुबह नाश्ता से पहले ब्रश करें। कभी-कभी कुछ पेशेंट बताते हैं कि वो कि वो नाश्ते के बाद ब्रश करते हैं ये गंदी आदत है l हमें सुबह कुछ भी खाने से पहले ब्रश करना चाहिए। हार्ड ब्रश का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए बल्कि हमेशा सॉफ्ट या अल्ट्रा सॉफ्ट ब्रश का ही प्रयोग करना करें ।

तत्काल भारत : डॉक्टर साहब जब लोग गुस्सा होते हैं तो बोलते हैं कि एक घूंसा मारेंगे तो बत्तीसी बाहर आ जायेगी। क्या बत्तीसी इतनी बेबस होती है कि एक घूंसे में बाहर आ जाती है? बत्तीसी बाहर आ ही गयी तो फिर से लग सकती है या नहीं?

डॉ जितेंद्र राव : गुस्सा करना या मारपीट करना गंदी बात है। वैसे एक घूंसे में बत्तीसी तो बाहर नहीं आती लेकिन एक दो दांतों को जरूर नुकसान हो सकता है। जैसा कि मैंने पहले बताया कि हमारी यूनिवर्सिटी में हर तरह की सुविधा मौजूद है और विशेषज्ञ डॉक्टर्स की देखरेख में पूरा इलाज हो सकता है।

तत्काल भारत : डॉ राव कोरोना काल हमारी जिंदगी का सबसे डरावना काल रहा है l इस काल में डॉक्टर्स भी भयभीत थे l आपने इस काल को अपने मरीजों के लिए किस प्रकार इस्तेमाल किया?

डॉ जितेंद्र राव : मैने अपने विभाग में एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर बनाई थी l कोरोना दरअसल नाक एवं मुंह से संबंधी बीमारी है जिसकी वजह से ओरल सर्जन सबसे ज्यादा भयभीत थे l फिर भी डॉक्टरों ने इलाज जारी रखा और बेफिक्र होकर लोगों की सेवा की और पैरामेडिकल स्टाफ एवं जनता की सहायता से कोरोना महामारी को मार भगाया।

तत्काल भारत : प्रोफेसर जितेंद्र राव एक डॉक्टर के साथ – साथ देश के एक जागरूक नागरिक भी हैं, आईये जान लेते हैं भारत के भविष्य को लेकर उनका दृष्टिकोण क्या है?

डॉ जितेंद्र राव : मैने भारत सरकार के साथ मिलकर उत्तर भारत में पहला हेल्थ सर्वे किया था जिससे यह मालूम हुआ कि गांवों में डॉक्टर्स की और विशेषकर डेंटिस्ट की भारी कमी है l मेरा मानना है कि स्कूलों में डॉक्टर्स अप्वॉइंट किये जाने चाहिए ताकि बच्चों का रेगुलर चेकअप हो सके और भविष्य का भारत हेल्दी हो सके। मैंने भारत सरकार को एक प्रस्ताव भेजकर अनुरोध किया है कि 3D लेजर लाइट का इस्तेमाल करके बत्तीसी बनाई जाये जो बत्तीसी पहले 15 से 16 दिन में बनती थी वो 3D लेजर लाइट का इस्तेमाल करके 3 दिनों के अंदर अंदर बनाई जा सकती है। डॉ राव का सपना है कि आने वाले समय में दांत से संबंधित बीमारियां शून्य हो जायें।

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