राजनीति की रपटीली राहों से रथी को रुबरु कराते महारथी

राजनीति में हर तस्वीर, हर शब्द, हर भाव-भंगिमा के मायने हुआ करते हैं। हम आप कुछ भी अनुमान लगाते फिरें लेकिन राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं, जो होता है वह दिखता नहीं। यह परंपरागत है कि राजनीति शायद ही कभी सीधी चाल चलती हो। उसमें हर बात, हर कदम नफा-नुकसान देखकर तय होता है।

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पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न  अटल बिहारी वाजपेयी  की  पुस्तक  राजनीति की रपटीली राहें पढने पर ऐसा लगता है कि वाजपेयी ने यह पुस्तक बेहद भारी मन से लिखी होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी तीन किसान हितैसी बिलों को वापस लेने की घोषणा करके भी कुछ वैसी ही अनुभूति हुई होगी। ये जिक्र इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी की बेहद रहस्मयी तस्वीरें वायरल हो रही हैं।

रविवार की सुबह लखनऊ के राजभवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी औ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बेहद आत्मीय एवं भावनात्मक अंदाज़ में नजर आये। तस्वीरें देख कर लग रहा है जैसे पीएम मोदी ने सीएम योगी को राजनीति की उन बारीकियों पर मार्गदर्शन किया होगा जिन रपटीली राहों पर चल कर उन्होंने रायसीना हिल्स के राजपथ का सफर तय किया है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री योगी को  अटल बिहारी वाजपेयी और स्वयं का उदाहरण देते हुए जरूर सचेत किया होगा कि हम दोनों ही राजनीति की रपटीली राहों पर कई-कई बार फिसले हैं पर आपको इस फिसलन से बचना है। आपको राजनीति की रपटीली राहों पर निरंतर अडिग होकर चलने का अभ्यास करना होगा, जिससे ध्येयमार्ग पर चलते हुए ‘लक्ष्य अन्त्योदत’ को प्राप्त किया जा सके।

एक और तथ्य ध्यान रखने योग्य है आज पहली बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने आधिकारिक सोशल अकाउंट्स से लिखा है कि ‘हम निकल पड़े हैं प्रण करके, अपना तन-मन अर्पण करके, जिद है एक सूर्य उगाना है, अम्बर से ऊँचा जाना है, एक भारत नया बनाना है…’ यह तथ्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि एक मुख्यमंत्री अक्सर अपने राज्य के विषय में टिपण्णी करता है, एक नया भारत बनाने का संदेश स्पष्टतः बहुत कुछ कहता है।

राजनीति में हर तस्वीर, हर शब्द, हर भाव-भंगिमा के मायने हुआ करते हैं। हम आप कुछ भी अनुमान लगाते फिरें लेकिन राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं, जो होता है वह दिखता नहीं। यह परंपरागत है कि राजनीति शायद ही कभी सीधी चाल चलती हो। उसमें हर बात, हर कदम नफा-नुकसान देखकर तय होता है। आज यह तस्वीर देश भर में लहरा रही है। डिजिटल मीडिया की भाषा में कहें तो यह टाॅप ट्रेंडिंग है।

इसको तरह-तरह से परिभाषित और व्याख्यायित किया जा रहा है। राजनीति के लिए एक शेर है- “सियासत की अपनी अलग इक जुबां है, लिखा जो हो इकरार तो इनकार पढ़ना।” इस तस्वीर में जो केमिस्ट्री दिख रही है, राजनीतिक लोग पता नहीं इसके बारे में क्या-क्या सोच रहे होंगे! आप सब क्या सोचते हैं, यह जिज्ञासा तो है ही।

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