लॉर्ड इरविन जी, मेरे बच्चों को छोड़ दीजिये.. मो. क. गॉधी

इस देश में सभी राजनीतिक पार्टियों द्वारा बापू और नेहरु को लेकर मनगढ़ंत छवि ही आम जनता के दिमाग में गढी जाती है, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गॉधी और पंडित नेहरू के बारे क्रांतिकारियों के क्या विचार और भाव थे। पढिये इस लेख में ये अंश एम एम जुनेजा द्वारा लिखित किताब 'द बायोग्राफी आफ भगत सिंह' से लिये गये हैं। शहीद ए आज़म भगत सिंह की जयंती के अवसर पर जरूर जानें महात्मा गॉधी और पंडित नेहरू के बारे में उनके विचार

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शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्मदिन 28 सितम्बर को मनाया जाता है भगत सिंह नाम त्याग, समर्पण और बलिदान का प्रतीक है भगत सिंह हमेशा अपने दोस्तों से कहते थे कि मेरे दिल में बापू के लिए बहुत सम्मान है, बापू बहुत पड़े नेता हैं पर इस माहौल में मैं बापू के अहिंसा वाले रास्ते पर बिल्कुल नहीं चल सकता।

मेरे सामने मेरे अपने भाई – बंधु मारे जा रहे हैं। मैं अहिंसा के रास्ते पर चलकर कभी भी उनको न्याय नहीं दिला पाऊंगा। उन दिनों जब भगत सिंह को फांसी दिया जा रहा था तो पंजाब व सिंध के लोगों में बापू के खिलाफ काफी गुस्सा था। सिंध के क्रांतिकारी ऐसा मानते थे कि बापू भगत का बचाव नहीं करना चाह रहे हैं।

जैसे ही भगत को फांसी दी गई, वैसे ही बापू के खिलाफ सिंध और पंजाब के लोगों में और गुस्सा बढ़ गया। जगह – जगह बापू के खिलाफ नारे लगने लगे। देखते ही देखते पंजाब के लोगों के मन में भगत सिंह के लिए और सम्मान बढ़ गया, वह भगत सिंह को बापू से भी ज्यादा चाहने लगे। पर सच यह है कि भगत सिंह के फांसी की खबर सुनकर बापू बहुत ही परेशान हुए थे, फांसी के एक दिन पहले उन्होंने लॉर्ड इरविन को पत्र भी लिखा था कि अगर कुछ गुंजाइश हो तो मेरे बच्चों को छोड़ दीजिये । बापू को हिंसा का रास्ता पसंद नहीं था पर वह भी जानते थे कि नौजवान मेरे रास्ते पर इस माहौल में नहीं चल सकते हैं।

भगत सिंह ने किरती नामक एक पत्र में लिखा था कि पंजाब के युवाओं को अगुवाई करने के लिए एक बेहतरीन नेता की जरुरत है, जिसकी अगुवाई सिर्फ जवाहर लाल नेहरु ही कर सकते हैं। भगत सिंह कहते हैं कि नेहरु के बात में बहुत ही वजन रहता है, जो मुझे क्रांति की तरफ प्रेरित करता है।

उन्होंने लिखा कि जवाहरलाल नेहरु कहते थे कि – प्रत्येक नौजवान को विद्रोह करना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र में भी। मुझे ऐसे व्यक्ति की कोई आवश्यकता नहीं जो आकर कहे कि फलां बात कुरान में लिखी हुई है। कोई बात जो अपनी समझदारी की परख में सही साबित न हो, उसे चाहे वेद और कुरान में कितना ही अच्छा क्यों न कहा गया हो, नहीं माननी चाहिए।

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