पीएम का मैं देश नहीं रुकने दूंगा मैं देश नहीं झूकने दूंगा और प्रेसिडेंट का हिंदू बौद्ध सिख

वसुधैव कुटुम्बकम की संस्कृति से पीछे हटने का प्रयास!

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लख़नऊ । घड़ी की बड़ी सूई 12 पर और छोटी सूई 6 पर जैसे पहुंची वैसे ही शाम के 6 बजे 17 वीं लोकसभा चुनाव का पहला चरण पूरा हो गया है।भारत की भाग्य विधाता अब किस को अपनी सेवा का अवसर देती है ये तो वक्त बताएगा लेकिन बीजेपी प्रेसीडेंट अमित शाह ने एक रैली को संबोधित करते हुए एक बयान दिया है उन्होंने बिना लाग लपेट के बिलकुल साफ साफ कहा कि उनकी पार्टी ये तय करेगी की पूरे देश में एनआरसी को लागू किया जाए यहां तक तो उनका कहना ठीक है लेकिन अमित शाह का ये भी कहना है कि इस देश से बुद्ध, हिंदू और सिखों को छोड़कर सभी घुसपैठियों को बाहर निकाला जाएगा।

आप को याद दिलाते चले जिन्हें अमित शाह घुसपैठिया बोल रहे हैं उनके आलोचक उन्हें शरणार्थी बोलते हैं खैर राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप तो चलते रहेंगे लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है हमारे देश की संस्कृति भी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की रही है अनेक अवसरों पर पीएम नरेंद्र मोदी भी इसका उल्लेख कर चुके हैं।  प्रधानमंत्री’का वो सुप्रसिद्ध गीत जिस में वो कहते’ मैं देश नही रूकने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा’ क्या ये बात और जो बात अमित शाह ने कही है कि  सिर्फ हिंदू, सिख और बुद्ध समुदाय के लोगों को ही नागरिकता प्रदान की जायेगी इसमें कोई विरोधाभास नहीं है फिर हमारी सभ्यता का वो मूल तत्व जो सहिष्णुता पर आधारित है क्या वो खो नहीं जायेगा  ?

पार्टी पॉलिटिक्स को तो समझ में नहीं आयेगा लेकिन क्या हमें ये समझने की कोशिश नहीं करनी चाहिए अगर धर्म और जाति के आधार पर देश चलाया जायेगा तो बुद्ध नानक कबीर गौतम का ये देश सिर उठाकर कैसे बोल पायेगा कि हम ‘सर्वधर्म समभाव’ वाले लोग हैं।

 

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