एक मुख़्तार…पीछे पड़ी पूरी अखिलेश सरकार

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अब्राहम मिएराज

गाजीपुर /मऊ /लखनऊ । बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वो सारे रास्ते बंद कर देना चाहते हैं जो विधानसभा तक जाते हैं।
यही वजह है कि मुख्तार को अपने प्रचार अभियान के लिए सीबीआई कोर्ट से चार मार्च तक के लिए मिले पेरोल पर ग्रहण लग गया है। इस मामले को निर्वाचन आयोग दिल्ली हाईकोर्ट में ले गया है। जहां 20 फरवरी को फैसला होगा कि मुख्तार पेरोल पर अपने निर्वाचन क्षेत्र मऊ में प्रचार कर पायेंगे या नहीं। चर्चा तो ये भी है कि आयोग मुख्तार ने के पेरोल को खुद संज्ञान में नहीं लिया होगा बल्कि इसके लिए अखिलेश सरकार वजह बनी सरकार ने मुख्तार को पेरोल पर रिहा करने के सीबीआई कोर्ट के आदेश को आयोग में पहुंचाया । उसके बाद आयोग हरकत में आया और दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच कर सीबीआई कोर्ट के उस आदेश पर फिलहाल रोक लगवायी ।
दिल्ली हाईकोर्ट में शुक्रवार को आयोग ने मुख्तार के आपराधिक इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि मुख्तार के अपने निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचने पर चुनाव की निष्पक्षता के साथ शांति व्यवस्था पर सवाल खड़ा हो सकता है उसके जवाब में मुख्तार के वकीलों ने पिछले लोकसभा चुनाव में सीबीआई कोर्ट से मिले पेरोल को आधार बनाया लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने अगले आदेश तक मुख्तार के पेरोल पर बाहर निकलने पर रोक लगा दी है।
आयोग की सक्रियता से ये सवाल उठ रहा है कि अखिलेश सरकार ने मुख्तार के पेरोल को खुद प्रशासनिक कार्रवाई के तहत क्यों नहीं रोका, इसके लिए उसे आयोग तक क्यों जाना पड़ा।
मुख्तार समर्थकों का मानना है कि सरकार को पता है कि वह मुख्तार को सीबीआई कोर्ट के आदेश के तहत पेरोल पर जेल से बाहर आने से नहीं रोक पाएगी सरकार को लोकसभा चुनाव भी याद है उस चुनाव में मुख्तार घोसी संसदीय सीट से लड़ रहे थे। सीबीआई कोर्ट उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार के लिए पेरोल दी थी लेकिन सरकार पेरोल के उस आदेश को टालती रही तब मुख्तार अंसारी कोर्ट के आदेश की अवहेलना का मामला बना कर दोबारा सीबीआई कोर्ट गए थे जहां सरकार को झुकना पड़ा था। हालांकि उसके बाद भी मुख्तार को वक्त पर अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाने का मौका नहीं दिया गया जेल से उनको निकाला जरुर गया फिर मऊ पहुंचने से पहले बीच राह से ही दोबारा जेल लौटा दिया गया था। जाहिर है कि इस बार भी मुख्तार वही करते लिहाजा सरकार ने खुद के बजाय आयोग के जरिये पेरोल के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करा दी। मजे की बात कि इस बार सीबीआई कोर्ट से पेरोल मिलने के बाद सरकार अवहेलना का आरोप नहीं झेलना चाहती थी इस फजीहत से बचने के लिए मुख्तार को पेरोल अवधि पर निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचाने और उस अवधि में सुरक्षा पर आने वाले खर्च की राशि भी जमा करा चुकी थी लेकिन शायद सरकार ये भूल गयी है कि… ये पब्लिक है ये सब जानती है।

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