लखनऊ: खबर है कि मुलायम ने भी कांग्रेस के उम्मीदवार वाली सीटों पर अपने कार्यकर्ताओं को नामांकन करने की अपील की है. वहीँ दूसरी ओर मायावती का कटाक्ष है कि दिल मिले न मिले हाथ मिलते रहने चाहिए. कुल मिलाकर दिल मिलने की नहीं सत्ता मिलने की बात है और जाहिर है दिल मिलने से सत्ता नहीं मिलती है. राहुल का मायावती की तारीफ़ और माया की भाजपा को हर हाल रोकने की इच्छा, जाहिर करना इस बात का द्योतक है कि सब मिलकर हर हाल में भाजपा को रोकना चाहते हैं और इन तीनों राजनीतिक दलों को अपनी साख उत्तर प्रदेश में बाचने के लिए यह जरूरी भी है. नहीं तो यदि भाजपा जिस घमंड में है उसकी चाल कामयाब हुई तो सबसे ज्यादा खामियाजा मायावती को ही भुगतना पड़ेगा . इनकी पार्टी में कोई नाम लेने वाला नहीं बचेगा|
किसी भी क्षेत्रीय दल के लिए सत्ता से 10 साल बहार रहने का मतलब है कि पार्टी का विध्वंस और यह किसी भी हाल में मायावती नहीं चाहेंगी, लिहाजा उन्हें किसी न किसी रूप में सत्ता सोपान करना होगा. उत्तर प्रदेश का चुनाव बहुत दिलचस्प मोड़ पर पहुँच चुका है. जहां अभी तक भाजपा का टेम्पो हाई था अब हवा निकलने लगी है. बहुत कुछ भाजपा का घमंड भी इनको स्वयं तोड़ रहा है. माया-मुलायम की राजनीतिक दुश्मनी जग जाहिर है. लेकिन बहन जी की बबुआ से कोई दुश्मनी नहीं है जो थी उसे अखिलेश ने मुलायम को पदस्थ कर दूर कर दिया है. राहुल बाबा तो भाजपा छोड़ सभी के मित्र हैं. यह तिकड़ी भाजपा पर भारी पड़ सकती है. उधर रालोद भी पूरे उत्तर प्रदेश में अपना चुनावी डंका भाजपा के खिलाफ ही पीट रही है. कुल मिलाकर भाजपा का सुरताल बिगड़ने लगा है| अब अगर भाजपा का बगावती सुर और भीतरघात नहीं रुका तो भाजपा का हारना तय है. अब भाजपा के पास केवल दो ही विकल्प हैं पहला कि वह मायावती को राजनीतिक माया दिखाकर कांग्रेस कि ओर जाने से रोकें और दूसरा अपने बगावत नेता व कार्यकर्ता को जादू की ऐसी झप्पी और घुट्टी दे कि उनकी मानसिक उत्तेजना और पाचन क्रिया सामान्य हो सके, नहीं तो राम के भरोसे राजनीति करने वालों बस आपको राम का ही सहारा होगा और राम भी बेचारे फटे तिरपाल के नीचे बैठकर क्या कर पाएंगे. उनके लिए आप तो कुछ कर नहीं पाए|