Election Commission! क्यों ना हों शामिल चुनाव आयुक्तों के चयन में Supreme Court और Opposition

संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपने यहां निर्वाचन आयोग की नियुक्ति और चुनाव प्रक्रिया आदि के प्रावधान तय किये गये थे. समय-समय पर चुनाव सुधार के नाम पर अनेक विधायी कदम उठाये गये। सन् 1989 के एक एक्ट के तहत सन् 1990 में चुनाव आयोग को एक की जगह तीन सदस्यीय बनाया गया। लेकिन निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया बदलने के लिए संविधान संशोधन की ज़रूरी पहल अब तक किसी सरकार ने नहीं की। पढिये वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का नजरिया

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भारतीय निर्वाचन आयोग

भारत में किसी भी चुनाव-सुधार से पहले निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की प्रणाली और प्रक्रिया में बदलाव जरूरी है। संवैधानिक प्रावधानों के तहत भारत के राष्ट्रपति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं। राष्ट्रपति इस नियुक्ति प्रक्रिया में देश के प्रधानमंत्री के जरिये मंत्रि-परिषद से सलाह/सिफारिश लेते हैं।आसान शब्दों और व्यावहारिक अर्थो में कहें तो निर्वाचन आयोग के तीनों आयुक्तों की नियुक्ति सरकार यानी प्रधानमंत्री की इच्छानुसार होती है।

संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपने यहां निर्वाचन आयोग की नियुक्ति और चुनाव प्रक्रिया आदि के प्रावधान तय किये गये थे. समय-समय पर चुनाव सुधार के नाम पर अनेक विधायी कदम उठाये गये। सन् 1989 के एक एक्ट के तहत सन् 1990 में चुनाव आयोग को एक की जगह तीन सदस्यीय बनाया गया। लेकिन निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया बदलने के लिए संविधान संशोधन की ज़रूरी पहल अब तक किसी सरकार ने नहीं की।

अचरज की बात है कि आयोग के काम-काज और आयुक्तों की निष्पक्षता पर समय-समय पर सवाल उठाये जाते रहे पर उनकी नियुक्ति के नियमों को बदलने के बारे में कोई कोशिश नही हुई. हर तरह के सुधार की बात सोची गयी पर इस बुनियादी सुधार पर सब मौन रहे।

लोकतंत्र के हमारे ढांचे और चुनाव कराने में चुनाव आयोग की कितनी अहम् भूमिका है, यह सबको मालूम है. फिर उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया इतनी एकतरफ़ा क्यों रहे? नियुक्ति सिर्फ सत्ताधारी संरचना ही क्यों करे? क्या इसे ज्यादा व्यापक और समावेशी बनाने की ज़रूरत नहीं है? नियुक्ति की सिफारिश करने वाले पैनल में सरकार के साथ विपक्ष और न्यायपालिका और समाज का भी प्रतिनिधित्व क्यों न हो?

उर्मिलेश कहते हैं कि नियुक्ति की सिफारिश करने के लिए उच्चस्तरीय कमेटी हो। इसमें सरकार के साथ विपक्ष और शीर्ष न्यायपालिका का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए। इस उच्चस्तरीय कमेटी में प्रधानमंत्री के साथ लोकसभा में विपक्ष के नेता और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हों। साथ में यह भी प्रावधान जोड़ा जाय कि नामों की सिफारिश आम सहमति से होनी चाहिए।

अगर इस तरह के विचार/प्रस्ताव पर सर्व दलीय सहमति बने तो संवैधानिक संशोधन के जरिये निर्वाचन आयोग के तीनों माननीय सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया और प्रणाली आसानी से बदली जा सकती है। इससे भारत का निर्वाचन आयोग ज्यादा लोकतांत्रिक, समावेशी, निष्पक्ष और जवाबदेह होकर उभरेगा।

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