मीडिया को गरियाओ और मशहूर हो जाओ |
आज कल मीडिया को गाली देने का जो फैशन निकला है पूछो मत | ऐसा लगता है कि अमेरिका से लेकर भारत तक इसकी कोई मुहीम छिड़ी हो | अब तक केवल मीडिया के बड़े घराने वाले नौकर ही गरियाया करते थे जो उनको छोटा अखबार दीखता था | अब वह खुद गाली के पात्र होते जा रहे है | न्यूटन का नियम काम करने लगा है | छोटे अखबार वालों को तो अब लोगों ने गरियाना भी बंद कर दिया है | क्योंकि उसको तो अब कोई कुछ समझता ही नहीं | सही भी है वो समझने लायक हैं भी नहीं | हाल ही में एक बाहुबली के करामाती नेता ने मीडिया पर जमकर अपनी भड़ास निकाली .कहा मीडिया बिकाऊ है | अब उनको कौन समझाए कि यह एक बिजनेस हो चुका है बिकाऊ जैसी बात करना कोरी मुर्खता है | औकात हो तो तुम भी खरीद लो | क्योंकि पछले लोक सभा चुनाव में इनके एक शुभचिंतक चिंटू ने एक छोटे अखबार में इनका और इनकी पार्टी का 5000 rs.का विज्ञापन छपवाया था लेकिन आज तक भुगतान नहीं कर पाया |अब इसे क्या कहें | खैर मऊ के मसीहाओं को कौन समझाए कि अब सांसद और विधायक भी खरीदे बेचे जाते हैं |यहां तक कि बनाये भी जाते हैं | जिस देवी के दल से जनाब फिर माननीय होने कि फ़िराक में हैं उस देवी के मंदिर में जूते बाहर निकालकर जो नतमस्तक हुए ,वहां कुछ भी बिकाऊ नहीं है | यदि ऐसा मै बहार निकलकर कह दूँ तो लोग मुझे क्या कहेंगे ,जाहिर है बिकाऊ कहेंगे | क्योंकि लोग जानते है कि उस दलित दरबार में दौलत पुर की दौलत की देवी निवास करती हैं और वहां का दरबार सिर्फ दौलत मंद लोगों के लिए है | कभी -कभी तो वहां दौलतमंद भी पानी मांगने लगते हैं | उस दरबार से भी सबसे पहले निशाना मीडिया कि ओर ही लगाया जाता है | जाहिर है दरबारी भी लगायेंगे |उनको शायद इस बात का भ्रम है कि मीडिया को गरियाने से ही सत्ता नसीब होगी | उनको शायद यह भी पता है कि मीडिया वालो को चाहे जितना गरियाओ कुछ नहीं होना है | लेकिन ऐसा नहीं है, कोई उन्हें बता देता तो शायद दिल्ली कि दूरी कम हो जाती | लेकिन उन्हें समझाए कौन ! वहां तो बड़े- बड़े बाहुबली भी नतमस्तक हो जाते हैं | मजाल है कोई चूं भी करदे | वह मीडिया नहीं है कि दस -दस जूता खाओ तमाशा घुस के देखो – खूब गरिया लो और मशहूर भी हो जाओ | वहां ऐसा नहीं है साहब | बच के रहना ,वहां फैशन काम नहीं आएगा | अपनी गठरी मीडिया से बचा कर रखना वहां काम आयेगा |