शिव कृपाल मिश्र
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2017 में जिस तरह से जनता ने भाजपा को प्रचंड जनादेश दिया है उससे सभी दलों की बोलती बंद है | इस प्रचंड बहुमत से अन्य दलों के तथाकथित किलों को ध्वस्त कर दिया है |अब खासकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को अपने घिसे पिटे फार्मूले को बदलना होगा | इसबार के विधानसभा चुनाव में कुल 403 में 325 का आंकड़ा इस बात का मजबूत प्रमाण है कि वह सभी वोटर्स जिसपर सपा बसपा अपना एकाधिकार मानती थी वह अब उनके पास से खिसक कर भाजपा में चली गई है | भाजपा की इस सुनामी को देखकर सपा बसपा सुप्रीमो हतप्रभ हैं | उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि उनकी जनसभाओं की भीड़ इ वी एम् तक जाते जाते अपना इरादा आखिर कैसे बदल दिया | सन 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत का जनादेश मिला | मायावती ने पांच वर्ष अपने हिसाब से सरकार चलाई |जनता को शायद पसंद नहीं आई और 2012 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें नकार दिया | 2012 में जनता ने समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत का जनादेश दिया और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने | अखिलेश यादव की तथाकथित अखिलेश सरकार पांच साल चलती रही , विकास भी किया लेकिन जनता की भावनाओं को नहीं समझ सके | जनता पूरी तरह मान नहीं पाई कि उत्तर प्रदेश में सरकार नाम की चीज भी है | लगभग चार वर्षों तक स्वयं अखिलेश भी संशय में थे | जबकि जनता ने इन्हें अप्रत्याशित बहुमत कुल 403 में 225 सदस्यों के साथ भेजा था | 2017विधानसभा चुनाव में जनता ने इन्हें भी नकार दिया | इस बार जनता का प्रचंड जनादेश भारतीय जनता पार्टी को मिला | कुल 403 में से 325 पर भेजकर जनता पिछले कई दशकों के रिकार्ड तोड़ जनादेश देकर बीजेपी को यूपी का सिंहासन सौंप दिया | इस जनादेश को देखकर बीजेपी सहित सभी दल भौंचक्के रह गए |बड़े बड़े राजनीतिक पंडितों की पंडिताई ढेर हो गई | अपनी इस जबरदस्त हार से मायावती बौखला गई और इ वी एम् मशीन को ही नकारा कह डाला साथ ही इसे जांच का विषय कहते हुए बीजेपी मुखिया अमित शाह व मोदी को ही चुनौती दे डाला | जाहिर है बहुमत की सरकार बनाने वाली पार्टी सीधे 19 पर आकर चित हो गई | अब अपनी लाज बचाने के लिए उन्हें ऐसे दिवालियेपन वाले बयान मजबूरन देना पड़ा | उधर लोहा से कुंदन भये नारों के बीच सपा सुप्रीमो बने अखिलेश ने अपनी सारी खीज जनता पर कटाक्ष कर निकाला | उन्होंने अपनी भड़ास निकालते हुए बोला कि विकास पर वोट नहीं गिरा , जनता न जाने क्या चाहती है |
दरअसल अखिलेश की भाषा और माया की चुनौती दोनों ही दिमागी रूप से दिवालियेपन का शिकार होने को तस्दीक करते हैं | जिसका प्रमाण इन लोगों ने चुनाव प्रचार के दौरान भी दिया | अपने एजेंडे से भटक कर बीजेपी का एजेंडा कब बन गए इन्हें अभी तक नहीं पता चल सका है | वही दशकों पुराने साम्प्रदायिकता के मुद्दे को ढोते रहे ,उल जुलूल बोलते रहे और इनके मूर्ख चाटुकारों की फौज ताली बजाती रही | साम्प्रदायिकता के अलाप विलाप से जनता ऊब चुकी है जिसे लोग अब सुनना नहीं चाहते हैं | इसे कैसे परोसा जाए इसका तरीका इन्हें नहीं मालूम था | जिसका फ़ायदा बीजेपी को मिला | मोदी और अमित शाह ने जो जाल फेंका उसमे बुआ – भतीजे दोनों बुरी तरह फंस गए | गदहा कहते कहते कब गदहा बन गए पता ही नहीं चला | इसबार राजनीति में उन भाषाओं का जमकर प्रयोग हुआ जिसे आमतौर पर माना जाता है कि ऐसे शब्दों का प्रयोग जाहिल – गंवार करते हैं | लेकिन इन्हें नहीं पता था कि वोटर्स अब न तो जाहिल है और न ही गंवार , और न ही वह जाहिल – गंवार नेता चाहता है |
रहा सवाल जनसभाओं में भीड़ का तो वह आमजनता जान चुकी है कि भीड़ कैसे होती है | किसी जनसभा में भीड़ का 75 फ़ीसदी हिस्सा तकरीबन सभी जनसभाओं में पाए जाते है | अब कोई मुफ्त में किसी को सुनने देखने नहीं जाता है और न ही उसके पास आपकी दी हुई महंगाई से समय है | वह उसका पैसा और साधन पाता है तब जाता है | अब इस गफलत में ना रहिये कि यह भीड़ आपके लिये इ वी एम् मशीन में आपके नाम की बटन दबाने जा रही है | अब सिर्फ नेता का करिश्मा है कि अपनी करिश्माई चेहरे और अदाओं से अपनी नीति और नियत को समझा और दिखा पाता है |यह जिम्मेदारी पार्टी के मुखिया के दिमाग रुपी कन्धों पर है | जनता तैयार है आपके लिए रेड कारपेट बिछाने को लेकिन शर्त है कि पब्लिक को महसूस हो कि उसका नेता पागल या दिवालियेपन का शिकार न हो | उसे पता हो कि उसके नेता का सरोकार सिर्फ अपने परिवार से नहीं बल्कि जनता से भी हो | सियासतदारों सावधान ! जनता अब इतनी समझदार हो चुकी है कि अब वह भी सियासत जान चुकी है |अब सियासत नेता नहीं जनता करने लगी है वह भी पूरी इमानदारी से | पिछले 10 साल से सबको सामान रूप से मौका देती आ रही है अबकी बीजेपी को दी है | अब अगर इन्हें भी घमंड आ गया , जनता अपने को ठगा हुआ महसूस की तो इनकी भी खैर नहीं और फिर जनता यू पी में कांग्रेस को भी मौक़ा जरूर देगी |
“बड़ी शिद्दत से सुन रहा है ज़माना ,तुम्ही सुना न पाए ज़माने को दास्तान अपनी
हम तो बैठे देख रहे थे तबियत से , हमें पागल मानकर , तुम्ही मचल रहे थे गफलत में अपनी “