उन्नाव जनपद को जहां कलम और तलवार से धनी माना गया वही ये जिला अपनी गर्त में सैकड़ो पुरानी विरासतों को दबाये हुए है बात करें अगर उन्नाव जिले के पुरवा विधान सभा की तो यहा मौरावां में राजा शंकर सहाय की विरासत के नमूने देखने तो मिलते है, राजा शकर सहाय के पास हजारों बीघे जमीन थी जिसमे से उन्होंने सैकड़ो बीघे जमीन सरकार को अस्पताल स्कूल आदि कई सरकारी इमारतो को बनवाने के लिए दान में दे दिया।
जिससे उनके ना रहने के बाद उनका नाम ज़िंदा रहे ! ऐसा ही एक अस्पताल राजा साहब ने मौरावां में बनवा के प्रशासन को दान किया जिसका नाम राजा शंकर सहायं चैरिटेबल हास्पिटल हुआ करता था लेकिन आज लगभग एक दसक के बाद उनका ये नाम डूबता हुआ दिखाई दे रहा है ! ये नजारा है मौरावां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का जिसका निर्माण स्वयम राजा शंकर सहायं ने करवा कर जनता के लिए सरकार को दान में दिया था ताकि उनका नाम ज़िंदा रहे लेकिन आज इस अस्पताल से उनका नाम हटा दिया गया है उनके नाम का ये पत्थर मलबे में दबा हुआ मिला ! जिससे आम जनता और उनके वंशजों में प्रशासन को लेकर रोष देखने को मिला ! राजा तो अब नही रहे लेकिन उनके प्रपौत्र विवेक सेठ ने राजा के नाम का पत्थर दिखाते हुए जानकारी दी और प्रशासन के प्रति रोष प्रकट करते हुए मांग की कि जिस अस्पताल को उनके दादा जी ने पुनः राजा शकर सहाय के नाम से ही हास्पिटल को जाना जाए|
बताते चले अभी हाल ही में राजा के प्रपौत्र विवेक सेठ ने भी 100 बेड के हास्पताल के लिए सरकार को जमीन दान में दी है ऐसे में सवाल ये उठाता है कि अगर इस तरह से प्रशासन अपनी मनमानी करता रहेगा तो कोई भला सरकार की मदद क्यों करेगा ! राजा संकर सहाय के प्रपौत्र विवेक सेठ ने बताया की ये अस्पताल उनके बाबा जी के नाम था लेकिन जब इसका पुनः जीर्णोधार हुआ तो इससे उनके दादा जी के नाम का पत्थर हटवा कर मलबे में फेंक दिया गया जिससे उनके परिवार और मौरावां के लोगो की भावनाए भी आहात हुई है ! कुछ बुजुर्ग ग्रामीणों से बात किया गया तो सभी ने यही बताया की उनके समय में ये हास्पिटल राजा साहब के नाम से ही हुआ करता था ! तथा सी एम् ओ बीरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि ये तो शासन के काम है फिर भी मैं अस्पताल को पूर्व नाम दिलवाने का पूरा प्रयास करुगा।