जवां जवां हसीं हसीं, क्या लखनऊ की सरज़मीं?

बदलते वक्त के साथ साथ लख़नवी तहज़ीब के 'पहले आप' के चलन से रुबरु कराता हुआ लेख

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शालिनी सिंह, एंकर आकाशवाणी लखनऊ

हर गली में एक पत्रकार ,मोहल्ले में संपादक,समाज सुधारक,और समाज सेवियों की टोली मौजूद है। स्वयंसेवी संगठन यानी एन जी ओ का रजिस्ट्रेशन नंबर विशेष जागरूक लोगों की झोली में मौजूद है ।
हर दिन विशेष आयोजन में सभागार हाउस फुल भी हैं ।लेकिन लखनऊ की आबो-हवा में अब मोहब्बत की जगह नफ़रत घुल रही है। चाटुकारिता में मग्न पत्रकार की पत्रकारिता में न भाषा का रंग है न खबरों में धार। सच कहूं तो लुप्त होते जा रहे हैं वास्तविक पत्रकार ।नारी सशक्तिकरण के लिए सजे मंचों पर किटी पार्टियों का चलन जोरों पर है और सशक्तिकरण की आस लिए कामवाली बाइयों ने छुट्टी के अधिकार को लेकर अपनी गुटबंदी शुरू कर दी है और काम के बाद गली के कोने में सामूहिक बैठकी में रणनीति तय होने की शुरुआत हो चुकी है क्योंकि अपने अधिकारों के लिए समाजसुधारक और समाज सेवी मेमसाहब से ख़ुद ही लड़ना है और खुद ही अपनी पैरवी करनी है क्योंकि सशक्तिकरण तो हर स्त्री के लिए ज़रूरी है। किटी पार्टी, सशक्तिकरण मंच ,जागरूकता सभा ,सेमिनार और फैशन शो जैसे आयोजनों में कोई अंतर देखने को नहीं मिलता ….. हर जगह गाउन में सजी फैशन के मायनो की धज्जियां उड़ाती सुंदरियां, सितारे मोती से जड़ा हुआ व्यंग मारता सा ताज जो ख़ुद के अस्तित्व को बचाने की ख़ातिर एक अदद खूबसूरत चेहरे और व्यक्तित्व की तलाश में असफल पाकर लिपी पुती अय्यार सी सुंदरियों के सर से बेसुध सा लुढ़कता हुआ, पीतल की पॉलिश से रंगा हुआ मोमेंटों जिसकी मेमोरी धूमिल होने से पहले ही उसकी पॉलिश उड़ जाएगी, स्कूल से थके हारे बच्चों के चेहरों को रंग पोतकर ताज़गी भरा बनाकर सुपर चाइल्ड वाले पंख में उड़ाने की होड़ और मुख्य अतिथियों को सेल्फी ज़ोन में क़ैद करके सोशल मीडिया , अख़बार ,पोर्टल की खबरों में सफल कार्यक्रम की झलकियों में छा जाना… यही है जागरूकता का आधुनिकीकरण ।क्या वाकई सभ्यता व संस्कृति के उत्थान का दौर है, या ये महज शुरुआत के छोटे छोटे प्रयास जो बदलाव हेतु प्रयासरत तो हैं किंतु भटकाव है क्योंकि दिशानिर्देशक की कमी कहीं न कहीं है …… दिशा निर्देशन की कमी निश्चित ही होगी तभी तो लखनऊ की अदा ,तहज़ीब ,नज़ाकत, नफ़ासत इन बड़े कार्यक्रमों के मंचों ,सभागारों ,प्रेक्षागृहों की महफिलों में तमाम चमक और रंगीनियों के बावजूद अपने वजूद को तलाश रही है ताकि लखनऊ की हर शाम अदब से इठलाती हुई कह सके कि ….

लखनऊ की सरजमीं । ये लखनऊ की सरज़मीं। 

ये रंग रूप का चमन ,ये हुस्न ओ इश्क़ का वतन

यही तो वो मुकाम है…. जहाँ अवध की शाम है।

जवां जवां हसीं हसीं… ये लखनऊ की सरज़मीं।

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